कभी गरुड़-सा ऊंचा उड़ने वाला भारत आज अपनी ही टूटी-फूटी सीमाओं में कैद होकर रह गया है। यह वही धरती है जिसने अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक राज किया, लेकिन आज पाकिस्तान और चीन हमारी ज़मीन निगल रहे हैं और हम संयुक्त राष्ट्र की फाइलों में न्याय खोज रहे हैं।
अखंड भारत का सपना अब केवल नक्शे और नारों में क्यों सिमट गया है? क्या हम हमेशा समझौतों की बेड़ियों में जकड़े रहेंगे, या फिर अपनी खोई हुई ताक़त को दहाड़ बनाकर दुनिया को याद दिलाएंगे कि भारत सिकुड़ने के लिए नहीं, फैलने के लिए पैदा हुआ है?
Read in English: When will the dream of ‘Akhand Bharat’ be fulfilled?
भारत की आत्मा सदियों से विस्तार और गौरव में सांस लेती आई है। यह भूमि केवल हिमालय से कन्याकुमारी या कच्छ से असम तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसका दायरा कभी कंधार, तिब्बत, बर्मा, श्रीलंका, जावा और सुमात्रा तक फैला हुआ था।
आधुनिक भारत का नक्शा दरअसल हार और समझौतों का दस्तावेज़ है। ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने हमारी सीमाओं को मनमाने ढंग से काटा-छांटा, और आजाद भारत के नेताओं ने उसे नियति मान लिया। पाकिस्तान और चीन ने लगातार हमारी ज़मीन को निगला, लेकिन हमने सिर्फ विरोध दर्ज कराने और संयुक्त राष्ट्र में अर्ज़ी लगाने तक खुद को सीमित कर लिया।
आज कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े में है, तिब्बत जिसे हमारी सांस्कृतिक सीमा का हिस्सा माना जाता था, अब लाल सेना का मोहरा बन चुका है। नेपाल के साथ सीमा विवाद है, श्रीलंका में हमारे हितों पर हमले होते रहते हैं, मालदीव कभी भी हाथ से फिसल सकता है। सवाल यही है कि क्या हम हमेशा यूं ही अपनी भूमि और अपने प्रभाव क्षेत्र को खिसकते देखते रहेंगे?
इतिहास एक ही सबक सिखाता है। मुल्कों की ताक़त उनकी हदबंदी से नहीं, बल्कि उनके विस्तार से तय होती है। सिकुड़ता हुआ राष्ट्र कभी दुनिया के मंच पर इज़्ज़त हासिल नहीं करता। मौर्य साम्राज्य का गौरव इसी विस्तार पर टिका था। ब्रिटेन, रूस, इज़रायल, अमेरिका जैसे हर ताक़तवर मुल्क ने यही रास्ता अपनाया है। रूस ने साइबेरिया से लेकर अलास्का तक साम्राज्य बनाया, और आज भी यूक्रेन पर कब्ज़े के ज़रिये अपने विस्तारवादी हौसले का इज़हार करता है। इज़रायल, छोटा सा राष्ट्र, लेकिन उसकी जुर्रत दुनियाभर के अरब पड़ोसियों को चुनौती देती है। 1967 की जंग में उसने मिस्र और सीरिया को मात देकर गाज़ा से लेकर वेस्ट बैंक तक अपने फैलाव का झंडा गाड़ दिया।
अमेरिका ने भी कभी अलास्का खरीदा, कभी फिलीपींस पर धावा बोला। यह सब उदाहरण हमें साफ बताते हैं कि राष्ट्रवाद सिर्फ किताबों से नहीं चलता, उसे ज़मीन पर अपनी हदें बढ़ानी पड़ती हैं।
तो फिर सवाल यह नहीं कि अखंड भारत का सपना कब पूरा होगा, बल्कि सवाल यह होना चाहिए कि भारत कब अपनी झुकी हुई गर्दन सीधी करेगा। आज भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है, आर्थिक शक्ति है, विज़न है, लेकिन हिम्मत में कमी है। हमने अपने आपको एक अहिंसा और शांति-प्रिय छवि में कैद कर लिया है। हम शांति की दुहाई देते-देते भूल गए हैं कि ताक़तवर राष्ट्र ही अमन कायम रखते हैं। जो डराता नहीं, वह खुद डरा रहता है।
भारत को चाहिए कि वह पड़ोसियों में सिर्फ ‘मैत्री’ नहीं, बल्कि ‘खौफ़’ पैदा करे। मालदीव हमारे प्रभाव क्षेत्र से बाहर जाने की जुर्रत न करे, नेपाल समेत हिमालयी पट्टी पूरी तरह दिल्ली के निर्देशन में कार्य करे, श्रीलंका में हमारे हितों के विरुद्ध कोई कदम उठाना नामुमकिन हो। पाकिस्तान से कश्मीर वापस आए, चीन के कब्ज़े वाली भूमि बिना समझौते के लौटाई जाए। यह वह आक्रामक एजेंडा है जो नई पीढ़ी में रक्त में उबाल पैदा करेगा, राष्ट्रवाद को अरमान से हकीकत में बदलेगा।
बांग्लादेश से संवेदनशील ‘चिकन्स नेक’ हथियाना होगा। कच्चातिवु को श्री लंका से वापिस लेना होगा, गाल बजाकर नहीं बल्कि फौजी एक्शन से, और जाफना का भी एक हिस्सा जहां भारतीय तमिलों की बहुतायत है, लेना ही होगा। उधर, दुबई में अब हमारी सैन्य उपस्थिति जरूरी हो गई है। अगर अभी नहीं चेते तो ईदी अमीन के जमाने में ईस्ट अफ्रीका और युगांडा से हजारों भारतीयों को जैसे खदेड़ा गया था, वैसे ही कोई रूठा शेख किसी दिन लाखों भारतीयों को यूएई से भागने का हुक्म दे सकता है। कनाडा में भारतीयों की सुरक्षा के लिए कुछ ठोस उपाय करने होंगे।
सहयोग हमेशा बराबरी वालों के बीच होता है, और दुनिया की राजनीति बराबरी की भाषा नहीं समझती। वह केवल ताक़त को पहचानती है। ताक़त की बुनियाद सिर्फ आर्थिक या सांस्कृतिक शक्ति नहीं होती, बल्कि सैन्य आक्रामकता और भू-राजनीतिक फैलाव में होती है। अखंड भारत तब ही बनेगा जब दुनिया यह समझ ले कि भारत अब अपनी सीमाओं में कैद रहकर छोटा राष्ट्र बनने को तैयार नहीं है।
आज वक्त आ गया है कि हम अखंड भारत की कल्पना को स्वप्न की तरह नहीं, राष्ट्रीय लक्ष्य की तरह देखें। हिंदुस्तान को वही गरुड़ बनना होगा, जो खोए हुए आसमान को वापस हासिल करे। यह आह्वान सिर्फ राजनीति का नहीं; यह पूरी सदी की पुकार है। अब और इंतजार नहीं। अखंड भारत ज़रूर बनेगा—और तब दुनिया का हर मुल्क इस सच को मानने पर मजबूर होगा कि भारत सिकुड़ने के लिए नहीं, फैलने के लिए बना है।

								
		
		
		
		
		
		
			



			
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