दिल्ली की गर्मियों की चिपचिपी शाम। एक ग्राहक ने अपने मोबाइल फोन पर अंगुली फेरी और चाट वाले के खोमचे पर रखा साउंड बॉक्स बोल उठा। पलक झपकते ही चाट वाले के बैंक खाते में 20 रुपये पहुंच चुके थे। छुट्टे की कोई झिकझिक नहीं। ग्राहक को सहूलियत कि बटुआ निकालने की जरूरत नहीं पड़ी। खोमचे वाले को तसल्ली कि रुपये बैंक खाते में पहुंच गए। इस तरह के वाकये भारत में इतना आम हो चुके हैं कि किसी को हैरानी नहीं होती। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अर्थशास्त्रियों समेत विश्वभर के विशेषज्ञ यूपीआई की इस कामयाबी की कहानी का अध्ययन कर रहे हैं।
आईएमएफ ने जून में एक वित्तप्रौद्योगिकी नोट जारी किया जिसका शीर्षक था, ‘बढ़ते खुदरा डिजिटल भुगतान : अंतर्संचालनीयता का महत्व’। इसमें सराहना करते हुए कहा गया कि 2016 में शुरू की गई भारत की तुरंत लेनदेन की प्रणाली एकीकृत भुगतान इंटरफेस, यानी यूपीआई, ने भारतीय डिजिटल भुगतान परिदृश्य का कायाकल्प कर दिया है। यह समूची दुनिया के लिए एक मिसाल है।
Read in English: India’s silent digital revolution becomes global symbol of innovation
आईएमएफ की तारीफ यहीं खत्म नहीं हुई। उसने ‘फाइनांस एंड डेवेलपमेंट’ के सितंबर 2025 अंक में ‘इंडियाज फ्रिक्शनलेस पेमेंट्स’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख में बताया गया है कि किस तरह यूपीआई ‘भारत के लेनदेन के परिदृश्य का कायाकल्प करते हुए विश्व की सबसे बड़ी तुरंत भुगतान प्रणाली बन गया है। इसके जरिए हर महीने औसतन 19 अरब से ज्यादा लेनदेन किए जाते हैं।’
इस लेख के अनुसार भारत का अनुभव बताता है कि किस तरह अंतर्संचालनीयता उपभोक्ताओं के सशक्तीकरण के साथ ही नकदी रहित लेनदेन अपनाए जाने की गति बढ़ाते हुए वित्तीय क्षेत्र में नवोन्मेष को प्रोत्साहित करती है। एक समय ज्यादातर नकदी पर ही चलने वाले देश के लिए आईएमएफ के ये विचार डिजिटल भुगतानों की क्रांति में भारत की कामयाबी का सबूत हैं।
यूपीआई की कहानी की शुरुआत किसी ऐप से नहीं, बल्कि एक विचार से हुई। एक अरब से ज्यादा आबादी वाला देश भारत किस तरह पारंपरिक बैंकिंग से छलांग लगाते हुए सीधे डिजिटल युग में पहुंच सकता था? इसका जवाब उस चीज में छिपा है जिसे बाद में नीति निर्माताओं ने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना नाम दिया। यह डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना वास्तव में इन सुधारों की तिकड़ी है, जन धन योजना, जिसके तहत करोड़ों बैंक खाते खोले गए; आधार, जिसने हर नागरिक को एक बायोमेट्रिक पहचान दी और दूरसंचार के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की वजह से सस्ता मोबाइल डाटा जिसने इंटरनेट को आम जनता तक पहुंचाया।
नेशनल पेमेंट्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया ने इस तिकड़ी की बुनियाद पर ही 2016 में यूपीआई की शुरुआत की। अलग-थलग वॉलेट के विपरीत यूपीआई को अंतर्संचालनीय बनाया गया। इसने किसी भी यूपीआई ऐप का इस्तेमाल कर एक बैंक खाते से दूसरे में तुरंत भुगतान को संभव बनाया। यूपीआई अपनी सरलता में क्रांतिकारी था। इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए पहले अपने वॉलेट में रकम डालना जरूरी नहीं था। उन्हें यह चिंता करने की भी जरूरत नहीं थी कि उनसे रकम लेने या उन्हें धन देने वाला किस ऐप का इस्तेमाल कर रहा है।
आईएमएफ ने इस नवोन्मेष को रेखांकित करते हुए कहा कि अंतर्संचालनीयता यह सुनिश्चित करती है कि यूपीआई एकाधिकार से संचालित अलग-थलग प्रणालियों की खामियों से बचा रहे। यह वास्तव में अपना पसंदीदा ऐप चुनने की आजादी को बढ़ाते हुए प्रदाताओं को गुणवत्ता सुधारने और नवोन्मेष के लिए प्रोत्साहित करता है। थोड़े से शब्दों में कहें तो यूपीआई ने एक समान अवसर पैदा किया जिसकी बदौलत बैंक और वित्तप्रौद्योगिकी से लेकर बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां तक एक ही राह पर चल पड़ी हैं।
यूपीआई की वृद्धि का पैमाना चौंका देने वाला है। अगस्त तक, इस प्रणाली से 24.85 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 20 अरब से अधिक लेनदेन हुए। इस विकास की छलांग को और ताकत देते हुए, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम ने 'खरीदार से व्यापारी' भुगतान के लिए यूपीआई लेनदेन सीमा को संशोधित किया है। 15 सितंबर तक, उपयोगकर्ता चुनिंदा सत्यापित श्रेणियों के लिए प्रति दिन ₹10 लाख तक का व्यापारिक लेनदेन करने में सक्षम हो गए, जिससे उच्च मूल्य के लेनदेन के लिए डिजिटल भुगतान को अपनाने में सुविधा मिली।
आज, भारत में सभी डिजिटल लेन-देन में यूपीआई का योगदान 85 प्रतिशत है। यह अब केवल एक वित्तीय आंकड़ा नहीं रह गया है। यह इस बात का प्रतिबिंब है कि यूपीआई आम भारतीयों के दैनिक जीवन में कितनी गहराई से समा गया है। छोटे शहरों के सब्ज़ी विक्रेताओं से लेकर ग्रामीण बाज़ारों में महिला उद्यमियों तक इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
आईएमएफ की रिपोर्ट भारतभर में व्यापक रूप से प्रचलित इस धारणा को पुष्ट करती है कि यूपीआई केवल सुविधा का साधन नहीं है, बल्कि सशक्तिकरण का जरिया बन गया है। दिल्ली में चाय बेचने वाला अपनी डिजिटल कमाई पर उतना ही भरोसा कर सकता है जितना कि नकद पर। पटना में एक घरेलू कामगार बिना कतार में खड़े हुए तुरंत अपने घर पैसा भेज सकता है। मध्य प्रदेश में किसान सीधे अपने बैंक खाते में भुगतान प्राप्त कर सकते हैं, इससे बिचौलियों पर निर्भरता कम हुई है। सरकार के लिए यह गर्व की बात है।
भारत में 89 फीसदी से ज़्यादा व्यस्कों के पास अब बैंक खाते हैं, जिनमें से कई 'आधार' और जन-धन योजना के ज़रिए संभव हुए हैं और यूपीआई उन्हें डिजिटल अर्थव्यवस्था से जोड़ने वाला सेतु बन गया है।
जो शुरुआत एक भारतीय नवाचार के रूप में हुई थी, वह आज एनपीसीआई इंटरनेशनल पेमेंट्स लिमिटेड के नेतृत्व में साझेदारी के माध्यम से सीमाओं को लांघ रही है। सिंगापुर में, सीमा पार तत्काल धन हस्तांतरण के लिए यूपीआई को ‘पे नाओ’ से जोड़ा गया है। संयुक्त अरब अमीरात और मॉरीशस में भारतीय यात्री यूपीआई के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं के लिए भुगतान कर सकते हैं।
फ्रांस में, भारतीय पर्यटक अब एफिल टॉवर पर केवल एक क्यूआर कोड स्कैन करके रुपये में बिल का भुगतान कर सकते हैं। नेपाल और भूटान ने पहले ही लेन देन के लिए यूपीआई को अपना लिया है। एशिया, अफ्रीका और यूरोप के केंद्रीय बैंकों और वित्त प्रोद्योगिक कंपनियों के साथ बातचीत चल रही है।
यह एक खामोश लेकिन गहरा बदलाव है। दशकों तक, वैश्विक वित्त को पश्चिमी संस्थानों और कार्ड नेटवर्क द्वारा परिभाषित किया जाता रहा। अब, एक भारतीय निर्मित सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को निर्यात के रूप में सामने लाया जा रहा है। यूपीआई के जरिये न केवल सीमाओं के पार धन का लेन देन हो रहा है बल्कि यह नवाचार, समावेशन और व्यापकता के लिए भारत की प्रतिष्ठा को भी आगे बढ़ा रहा है।
आईएमएफ ने भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को समावेशन के एक आदर्श के रूप में रेखांकित किया है। यूपीआई की प्रशंसा करते हुए आईएमएफ ने इसके पीछे की संरचना की ओर भी इशारा किया जिसे भारत अपनी डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना कहता है। यूपीआई अकेले सफल नहीं हुआ। यह हर भारतीय को एक विशिष्ट पहचान देने वाले 'आधार' और 'जन धन योजना' जिसके तहत करोड़ों लोगों के बैंक खाते खोले गए, के साथ विकसित हुआ। इसमें दुनिया का सबसे कम खर्चीला मोबाइल डेटा भी जोड़ दीजिए। इनके साथ ही यूपीआई के फलने-फूलने का मंच तैयार हो गया है।
यह क्रमबद्ध दृष्टिकोण-पहचान, खाते, कनेक्टिविटी और फिर भुगतान ही भारतीय मॉडल को अन्य देशों के लिए आकर्षक बनाता है। आईएमएफ का कहना है कि नकदी पर निर्भरता से जूझ रहे देश इस फॉर्मूले को अपना सकते हैं। वे बुनियादी ढांचा तैयार करें, खुले भुगतान के रास्ते बनाएं और फिर निजी कंपनियों को नवाचार करने की अनुमति दें। आईएमएफ ज़ोर देकर कहता है कि इसकी कुंजी अंतर्संचालनीयता है। प्रणाली को खुला बनाकर भारत ने ऐप और बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित की, जिससे सेवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ और उपयोगकर्ताओं का भरोसा बढ़ा।
भारत की मौन डिजिटल क्रांति नवोन्मेष का वैश्विक प्रतीक बन गई। सड़क पर सामान बेचने वाला विक्रेता जो अपने साउंडबॉक्स पर पैसा प्राप्त करने की आवाज़ सुनता है, वह शायद इस बात से अनभिज्ञ होगा कि यूपीआई को विश्व और आईएमएफ जैसे विकास संस्थानों से मान्यता मिल गई है। उनके रोज़मर्रा के अनुभव, तेज़, सुरक्षित और कैशलेस लेन-देन ने ही दुनिया का ध्यान खींचा। उनमें और उनके जैसे लाखों लोगों में इस बात की कहानी छिपी है कि कैसे भारत ने अपने भरोसे को डिजिटल बनाया।
यूपीआई आज एक भुगतान के माध्यम से कहीं बढ़कर है। यह भारत के नवाचार का चेहरा है, इसके समावेशी विकास का प्रतीक है और अब, नकदी से डिजिटल की ओर बढ़ने के इच्छुक देशों के लिए एक प्रकाश स्तंभ है। यूपीआई न केवल भारत की सफलता की कहानी बन गया है, बल्कि संभावनाओं का एक वैश्विक प्रतीक भी बन गया है।
नकदी से लेकर क्लिक करने तक, डिजिटल रथ पर सवार हो कर भारत विश्व मंच पर पहुंच रहा है और दुनिया उस पर गौर कर रही है।
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