आदि शक्ति माता दुर्गा की पूजा वैसे तो हमेशा की जाती है जिसे जब जैसा समय हो वैसे लोग अपनी अपनी परंपराओं के अनुशार करते रहते हैं। नवरात्र पर्व पर इस पूजा का विशेष महत्त्व होता है। मुख्य रूप से चैत्र और आश्विन मास में नवरात्र मनाए जाते हैं। दो गुप्त नवरात्र भी माने जाते हैं जो आषाढ़ और पौष मास में होते हैं। चूँकि भारत कृषि प्रधान देश रहा है इसलिए चैत्र में गेहूं की फसल और आश्विन में धान की फसल होने के कारण ये दो नवरात्र धूमधाम से मना लिए जाते थे इसीलिए चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही विशेष प्रचलन में रह गए तथा आषाढ और पौष मास के नवरात्र गुप्त होते चले गए! अत: इन्हें स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इनका विशेष महत्त्व है। आयुर्वेद में कहा गया है कि ऋतु संधियों में अर्थात मौसम बदलते समय स्वास्थ्य बिगडने की विशेष संभावना रहती है इसलिए इन समयों में वमन विरेचन आदि पंच कर्म करने का विधान है इससे शरीर शुद्ध हो जाता है और रोग होने की संभावना भी नहीं रह जाती है - "असाध्य भेषजै: व्याधि: पथ्यादेव निवर्तते"। अर्थात व्रती भाव से फल फूल खाकर नियम संयम पूर्वक रहने से दवा के द्वारा न ठीक हो सकने वाले रोग भी पथ्य भोजन अर्थात व्रत करने मात्र से ठीक हो जाते हैं। इसी समय यदि दुर्गा जी की आराधना भी की जाए तब तो तन मन धन आदि सभी दृष्टियों से अत्यंत उत्तम हो जाने में क्या संदेह है! देवी भागवत में इसी बात को बताते हुए व्यास जी ने जन्मेजय जी से कहा है कि शरद और बसन्त ये दोनों ऋतुएँ यमदंष्ट्र अर्थात यम राज के दाँत की तरह भयंकर मानी गई हैं। इन ऋतुओं में संसार के प्राणियों में बडे बडे रोग जन्म लेते हैं,अत: चैत्र और आश्विन के पवित्र महीनों में यत्न पूर्वक दुर्गार्चन किया जाए तो भगवती सभी प्राणियों की रक्षा करती रहती हैं। (व्यवहार में भी डेंगू आदि तरह तरह के होने वाले ज्वरों एवं अतिसार आदि रोगों का प्रकोप भी नवरात्र तक ही विशेष देखा जाता है।) इसीलिए देश के विभिन्न भागों की दुर्गा पूजा परम्पराओं, पद्धतियों एवं उत्सव मनाने के रीति रिवाजों में भले ही कुछ अंतर हो किंतु नियम संयम से व्रती रहकर सात्विक भावना से श्रद्धा पूर्वक भगवती की आराधना करने का विधान सभी जगह एक समान ही देखने को मिलता है। इसलिए हर किसी को तन मन धन की कुशलता के लिए माता दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
साभार-khaskhabar.com
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