द्वापर युग में जन्मे श्रीकृष्ण हमारे जीवन का आधार हैं। इस धरती पर उनसे बड़ा ईश्वरतुल्य कोई दूसरा नहीं है, इसीलिए उन्हें ‘पूर्णावतार’ भी कहा गया है। कृष्ण ही गुरु हैं, कृष्ण ही सखा भी हैं। कृष्ण ही भगवान हैं। कृष्ण ही राजनीति, कृष्ण ही धर्म, कृष्ण ही दर्शन और कृष्ण ही योग का पूर्ण आधार हैं। कृष्ण को जानना और उनकी भक्ति करना ही हिंदुत्व का भक्ति मार्ग है।
करीब 3112 ईसा पूर्व जन्मे भगवान श्रीकृष्ण एक राजनीतिक, आध्यात्मिक और योद्धा ही नहीं थे, बल्कि वह हर तरह की विद्याओं में पारंगत पुरुष थे। भगवान श्रीकृष्ण से धर्म का एक नया रूप और संघ शुरू होता है। श्रीकृष्ण ने आधुनिक प्रेम, धर्म, राजनीति, समाज और नीति-नियमों की व्यवस्था को जन्म दिया था।
भगवान कृष्ण विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश व वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है। यह ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय व प्रासंगिक है तथा नीति के मार्ग पर चलने की राह दिखाता है। इस कृति के लिए कृष्ण को ‘जगतगुरु’ का सम्मान भी दिया जाता है।
कृष्ण वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे। उनका पूरा बचपन गोकुल में ही व्यतीत हुआ। बाल्यावस्था में ही उन्होंने कई ऐसे बड़े-बड़े कार्य किए, जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे।
न्याय और अन्याय का भेद करते हुए श्रीकृष्ण ने पांडवों की मदद की और विभिन्न विपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया। कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के रूप में सम्पूर्ण भारत के अलावा नेपाल, अमेरिका सहित विश्वभर में मनाया जाता है।
Related Items
मोहब्बत का 'गुनाह'? वह सच जिससे डरता है समाज...!
‘ट्रंप टैरिफ’ के बाद भारत दृढ़ता से खोजे अपना मार्ग
भगवान शिव की महिमा और सावन का महीना...