पंचमहाभूतों में संतुलन स्थापन का समय है ‘अधिकमास’


हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, वायु, आकाश व पृथ्वी सम्मिलित है। अधिक मास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन मनन, ध्यान व योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।

‘अधिकमास’ में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपने भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह इस मास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई ऊर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का निराकरण हो जाता है।

भगवताचार्य दीपक शास्त्री के अनुसार, इस साल ‘अधिकमास’ का प्रारंभ 18 जुलाई दिन मंगलवार से हुआ। चूंकि, इस बार यह सावन माह के साथ जुड़ा हुआ है, इसलिए यह सावन ‘अधिकमास’ है। सावन में ‘अधिकमास’ के जुड़ने से श्रावण माह 59 दिन का हो गया है। ‘अधिकमास’ चातुर्मास से अलग होता है। यह एक महीने का होता है, जबकि चातुर्मास में चार माह आते हैं। इस साल ‘अधिकमास’ का समापन 16 अगस्त को हुआ।

इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि सौर कैलेंडर में 365 दिन और 6 घंटे का एक साल होता है, जिसमें हर चार साल पर एक लीप ईयर होता है। उस लीप ईयर का फरवरी माह 28 दिन की बजाय 29 दिन का होता है। चंद्र कैलेंडर में एक साल 354 दिनों का होता है। अब सौर कैलेंडर और चंद्र कैलेंडर के एक वर्ष में 11 दिनों का अंतर होता है। इस अंतर को खत्म करने के लिए हर तीन साल पर चंद्र कैलेंडर में एक अतिरिक्त माह जुड़ जाता है। वह माह ही ‘अधिकमास’ होता है। इस तरह से चंद्र कैलेंडर और सौर कैलेंडर के बीच संतुलन बना रहता है। इस वजह से हर तीन साल में एक ‘अधिकमास’ होता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ‘अधिकमास’ में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। नामकरण, विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश आदि वर्जित होते हैं। यह साल में अतिरिक्त महीना होता है, जिसे मलिन माना जाता है। इस वजह से इसे ‘मलमास’ भी कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, काल गणना में हर माह के लिए एक अधिपति देव हैं, जिनकी पूजा उस माह विशेष में की जाती है। चंद्र वर्ष में जब ‘अधिकमास’ के अधिपति देव को नियुक्त करने की बात आई तो कोई भी देवता इसके लिए तैयार नहीं हो रहा था। तब भगवान विष्णु ‘अधिकमास’ के अधिपति देव बनने के लिए तैयार हुए। उनका एक नाम ‘पुरुषोत्तम’ भी है, इसलिए ‘अधिकमास’ को ‘पुरुषोत्तम मास’ भी कहा जाता है।

माना जाता है कि ‘अधिकमास’ में भगवान विष्णु की पूजा करने से उनका आशीर्वाद मिलता है। इस माह में विष्णु पुराण, भागवत कथा आदि को सुनने, व्रत, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करने से सुख और शांति मिलती है।

एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार दैत्य हिरण्यकश्यपु ने ब्रह्मा को अपनी घोर तपस्या से प्रसन्न कर वरदान मांगा कि वह बारह महीनों में से किसी भी माह में न मारा जा सके। न दिन में उसकी मृत्यु हो और न ही रात में। उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार न सके। वह न किसी अस्त्र से मरे, न किसी शस्त्र से। उसे न घर में मारा जा सके, न ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यपु स्वयं को ‘अमर’ मानने लगा और उसने खुद को ‘भगवान’ घोषित कर दिया। पृथ्वी से अत्याचार मिटाने एवं उसके उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने ‘अधिकमास’ में ही नृ:सिंह अवतार लिया। तब बैसाख का महीना ‘अधिकमास’ था।

‘अधिकमास’ में कुछ कार्यों को निषेध माना गया है। मान्यता है कि इस दौरान नई चीजों की खरीदारी कर घर में नहीं लाना चाहिए। ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता है, इसीलिए पुरुषोत्तम मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस महीने वस्त्र आभूषण, घर, दुकान, वाहन आदि की खरीदारी नहीं की जानी चाहिए। शादी-विवाह भी ‘अधिकमास’ में नहीं करते हैं। किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों की इस दौरान मनाही है।

इस महीनें में दान-पुण्य करने का फल अक्षय होता है। यदि दान न किया जा सके तो ब्राह्मणों तथा सन्तों की सेवा सर्वोत्तम मानी गई है। दान में खर्च किया गया धन क्षीण नहीं होता। उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है। जिस प्रकार छोटे से बट बीज से विशाल वृक्ष पैदा होता है ठीक वैसे ही मल मास में किया गया दान अनन्त फलदायक सिद्ध होता है।

आमतौर पर अधिकमास में श्रद्धालु व्रत, पूजा-पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण व भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन व मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।

इस दौरान खाने-पीने की चीजों का भी बहुत महत्व है। इस माह तमोगुणयुक्त पदार्थों का सेवन करना शास्त्रों में मना है। इस माह कोई भी व्यक्ति यदि गेहूं, चावल, मूंग, जौ, मटर, तिल, ककड़ी, केला, आम, घी, सौंठ, इमली, सेंधा नमक व आंवला आदि का भोजन करें तो उसे जीवन में कम शारीरिक कष्ट होता है।

इसके उलट, इस माह में उड़द, लहसुन, प्याज, राई, मूली, गाजर, मसूर की दाल, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, शहद, मांस, मदिरा, धूम्रपान व मादक द्रव्य आदि का सेवन करने से तमोगुण की वृद्धि का असर जीवनपर्यंत रहता है। अत: पुरुषोत्तम मास में इन चीजों का खान-पान वर्जित बताया गया है।



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