पूर्वी पाकिस्तान से ‘पाकिस्तानी पिट्ठू’ बनने तक बांग्लादेश ने पूरा किया एक चक्र


वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, पाकिस्तान का पूर्वी भूभाग वर्ष 1971 में पृथक होकर स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश के नाम से स्थापित हुआ और विगत वर्ष 2024 में वही बांग्लादेश एक बार फिर पाकिस्तान की गोद में समाता हुआ दिख रहा है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अंग्रेजों ने भारत को सत्ता हस्तान्तरित करते समय इसे तीन प्रमुख भागों में विभाजित कर दिया। प्रथम - भारत, द्वितीय - पाकिस्तान तथा तृतीय - पूर्वी पाकिस्तान। मोहम्मद अली जिन्ना की महत्वाकांक्षा के कारण ही पाकिस्तान का गठन सम्भव हो सका और अंगेजों से शीघ्र मुक्ति एवं स्वतंत्रता प्राप्ति की ललक के कारण महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू तथा सरदार पटेल ने यह बंटवारा स्वीकार कर लिया। पाकिस्तान का भारत से पृथक होकर एक नवीन राष्ट्र के रूप में निर्माण होते समय किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि इस घोषणा के पश्चात वहां हिन्दुविरोधी उन्माद होगा, जिसमें लाखों हिन्दुओं की हत्या हो जाएगी और करोड़ों हिन्दुओं को अपना घर व सम्पत्ति को छोड़कर जान बचाने के लिए भारत में शरण लेनी पड़ेगी।

पूर्वी पाकिस्तान, विश्व के मानचित्र पर एक नवीन राष्ट्र के रूप में स्थापित तो हुआ, परन्तु भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध आज तक सामान्य नहीं हो पाए। दोनों देशों के करोड़ों रुपये सीमा रेखा की सुरक्षा पर व्यय हो रहे हैं। फिर भी दोनों देशों की सीमा रेखाओं पर संघर्ष आज भी सतत् रूप से चल रहा है। इसमें जन-धन की क्षति का होना एक दिनचर्या बन चुकी है।

वर्ष 1969 में पाकिस्तानी सेना व शासकों के विरुद्ध बांग्लादेश को स्वतंत्र कराने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में मुक्तिवाहिनी का उदय हुआ और वर्ष 1971 में भारत की सेनाओं ने अमेरिकी 9 फ्लीट की धमकी की अवहेलना करते हुए फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ और जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के नेतृत्व में वीरता का प्रदर्शन किया। फलस्वरूप, पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान के अधिकार से मुक्त हो गया। इसके साथ ही 93 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को 16 दिसम्बर 1971 को भारत के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए विवश किया और उन्हें युद्ध बंदी बनाकर भारत लाए।

भारतीय सेनाओं के इस पराक्रम से सम्पूर्ण विश्व अचम्भित होकर उसकी सशस्त्र सेनाओं का लोहा मानने लगा। भारतीय सेनाओं के सहयोग से ही शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश में आवामी लीग की सरकार गठित हुई। सम्पूर्ण बांग्लादेश की जनता भारत की कृतज्ञ थी कि उनको स्वतंत्रता दिलाने में भारत ने अपने हजारों बहादुर सपूतों का बलिदान कर दिया।

यदि कुछ अवधि को छोड़ दिया जाए तो वर्ष 1971 से बांग्लादेश में चुनाव लोकतंत्र व्यवस्था के अनुरूप होते रहे और भारत के साथ उनके घनिष्ठ संबंध बने रहे। वर्ष 2023 के आम चुनावों में शेख हसीना ने येन-केन-प्रकारेण विजयश्री प्राप्त कर ली। परन्तु, वहां की जनता हसीना के तथाकथित अलोकतांत्रिक कार्यों से क्षुब्ध हो गई और सम्पूर्ण देश ने आवामी लीग के कार्यकर्ताओं के विरुद्ध एक देशव्यापी आन्दोलन शुरू किया। इस आन्दोलन से भयभीत होकर हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी।

इस घटना के पश्चात बांग्लादेश की कानून व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति उपलब्ध नहीं था। मोहम्मद यूनुस को कार्यकारी प्रधानमंत्री का दायित्व दिया गया, परन्तु वह अपने दायित्व को लोकतंत्र के अनुसार पूर्ण करने में अभी तक असमर्थ रहे हैं। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण बांग्लादेश आतंकियों के अधिकार क्षेत्र में पहुंच चुका है।

बांग्लादेश की वर्तमान सरकार के कार्यकाल में प्रतिदिन हजारों हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा है तथा उनकी सम्पत्तियों को लूटकर आंतकियों ने अपने अधिकार में ले लिया है अथवा उस सम्पत्ति को नष्ट किया जा रहा है। हर उम्र की महिलाओं पर घोर अत्याचार हो रहे हैं। उद्योगों पर आतंकवादियों का नियन्त्रण हो चुका है। 

भारत के लिए यह एक बड़ी चिंता का विषय है कि बांग्लादेश अब भारत का मित्र न होकर पाकिस्तान का पिट्ठू बन गया है। अब यदि कभी युद्ध होता है तो तीन मोर्चों पर युद्ध करने की आवश्यकता होगी। परिणाम क्या होंगे? इसके विषय में अभी कोई अनुमान लगाना कठिन होगा। आज सबसे बड़ी आवश्यकता हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को रोकने की है। हमें याद आती है मानेक शॉ, जगजीत सिंह अरोड़ा एवं उनके सहयोगियों की जिन्होंने बांग्लादेश का निर्माण कराने में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। आज हम सभी भारतीयों की ईश्वर से प्रार्थना है कि बांग्लादेश में पुनः शांति स्थापित हो सके और वहां पर हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों पर विराम लगे।

(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं।)



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