एक किताब किसी व्यक्ति की जिंदगी को किस हद तक प्रभावित कर सकती है तथा उसकी जिंदगी में कितने नए आयाम खोल सकती है, इसका जीवंत उदाहरण पश्चिम जर्मनी के नोबेल पुरस्कार विजेता व महान भौतिकी शास्त्री वर्नर हाइजनबर्ग की जिंदगी को नजदीक से देखने से मिल सकता है।
वर्नर हाइजनबर्ग जब 19 वर्ष के थे, तब वह एक पाठशाला में संतरी की नौकरी किया करते थे। एक दिन ऐसे ही ड्यूटी देते वक्त उन्हें कही से विख्यात दार्शनिक प्लेटो की 'तिमैयस' नाम की पुस्तक मिल हो गई, जिसमें प्राचीन यूनान के परमाण्विक सिद्धांत दिए हुए थे।
इस पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते उन्हें भौतिकी में रुचि जगी और इसी तात्कालिक रुचि ने उनमें इस क्षेत्र में कुछ अनोखा करने का जज्बा पैदा कर दिया। कुछ मेहनत व जुनून और कुछ कुदरत का करिश्मा देखिए, वह 23 वर्ष की आयु में गोटिंजेन में प्रोफेसर मैक्स प्लांक के सहायक के पद पर नियुक्त हो गए। फिर तो, उन्होंने जैसे कभी पीछे मुड़कर कुछ देखा ही नहीं। वह एक के बाद एक सफलता के नए शिखर पाते ही चले गए।
अपने जीवन के चौबीसवें बसंत के बीतने तक वह कोपेनहेगन के विश्वविद्यालय में लेक्चरर हो चुके थे। 26 वर्ष की आयु में वह लीपजिंग में प्रोफेसर के पद पर आसीन हो गए। 32 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते, अपने पिछले छह-सात वर्षों के अनुसंधानों के आधार पर उन्हें भौतिक विज्ञान में उनके असाधारण योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
इस प्रकार एक पुस्तक ने एक संतरी को मात्र 13 वर्षों में नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में बदल दिया।
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