साहित्य / मीडिया

लंबे समय से शास्त्रीय पत्रकारिता के अध्येता कहते आ रहे हैं कि पत्रकारों को न तो किसी के पक्ष में बोलना चाहिए और न ही किसी के विरोध में। मतलब एक पत्रकार को ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ के सिद्धांत पर चलना चाहिए। लेकिन, हाल के वर्षों में हमारे देश की मीडिया बेवजह की बहस में पड़कर विभिन्न मुद्दों पर लगातार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती आ रही है...

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दीपावाली के अवसर पर अधिकांश त्योहारी बधाई और शुभकामना संदेश अज्ञान के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से दूर करने की बात करते हैं। लेकिन हकीकत में, वर्तमान युग में आस्था और भक्ति के नाम पर रूढ़िवादिता, पाखंडी अंधविश्वास और संकीर्णता को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह देखने की होड़ लगी हुई है कि कौन सबसे ज्यादा नफरत, द्वेष और दूरियां बढ़ा सकता है...

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हाल ही में, आगरा नगर निगम ने जॉन्स पब्लिक लाइब्रेरी का नाम बदल दिया, लेकिन पाठकों को आकर्षित करने और पुस्तक पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कोई कार्यक्रम घोषित करने में विफल ही रहा।

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चाहिए सिर्फ एक मोबाइल फोन विद इंटरनेट कनेक्शन..., जी हां..., और आ गया आपके हाथ में अलादीन का चिराग, या बंदर के हाथ  में उस्तरा...

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प्यारे बापू ने उन्हें ‘राष्ट्ररत्न’ कहा तो यह उनकी 'पदवी' ही हो गई। महामना मालवीय के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी। मालवीय को वह ‘पिता’ कहते थे। बाबू शिव प्रसाद गुप्त सचमुच विरले ही व्यक्तित्व थे। रईसी कितनी उदात्त, सरोकार संपन्न और परोपकारी हो सकती है, यह उनके संपूर्ण व्यक्तित्व और अवदान में देखा जा सकता है।

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राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को 'यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर' में शामिल किया गया है...

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