साहित्य / मीडिया

मौजूदा समय में जब पूरे देश पर चुनावी बुखार चढ़ा हुआ है तो दोहे और व्यंग्य को समेटे कुमार अतुल का नया कविता संग्रह ‘पोल डांस’ बेहद प्रासंगिक हो चला है। मौजूदा सियासत की विसंगतियों पर इसमें करारा व्यंग्य किया गया है। 

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जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने एक पुस्तक 'एन इलस्ट्रेटेड गाइड टू द लेपिडोप्टेरा ऑफ इंडिया : टैक्सोनोमिक प्रोसेजर्स, फैमिली कैरेक्टर, डायवर्सिटी एंड डिस्ट्रीब्यूशन' प्रकाशित की है।

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क्या ऐसा भी कोई होगा जो गालिब को न जानता हो...! खैर, जो नहीं जानते हैं, उनके लिए स्वयं गालिब का यह जवाब हाजिर है... “पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या”...

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... खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी...! बरसों पुरानी यह कविता ज्यादातर हिंदुस्तानियों को आज भी याद है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने जिस तरह से रानी लक्ष्मी बाई के शौर्य का चित्र खींचा है, वैसा विरले ही देखने को मिलता है...

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आज से करीब 100 साल पहले मदुरै में जब महात्मा गांधी देश के लिए विदेशी कपड़े छोड़कर सूत की धोती को धारण कर रहे थे, उसी समय बिहार के अररिया में शीलानाथ मंडल के यहां एक बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म पर परिवार को ऋण लेना पड़ा तो परिवार वाले बच्चे को ‘रेनुआ’ पुकारने लगे। यही रेनुआ अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य प्रेमियों को ऋणी कर गये।

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हिंदी कथाकार निर्मल वर्मा हिन्दी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक रहे हैं। पहाड़, शहर, यात्राएं और चेहरे जैसे बिम्बों के सहारे गहरी बात कह जाना उनकी प्रमुख विशेषता रही है...

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