मथुरा शहर में आदिकाल से चार महादेवों की पूजा का परंपरा चली आ रही है। हालांकि, मथुरा में अब हर गली-मोहल्ले में अनगिनत महादेव मंदिर बन गए हैं, मगर ऐसी मान्यता है कि यहां पूर्व में चार महादेव ही पूजे जाते थे।
मथुरा की भूमि आदि-वाराह भूतेश्वर-क्षेत्र कहलाती है। मथुरा के पश्चिम में भूतेश्वर, पूर्व में पिप्पलेश्वर, दक्षिण में रंगेश्वर और उत्तर में गोकर्णेश्वर का मंदिर है। चारों दिशाओं में चार मंदिर स्थित होने के चलते शिवजी को 'मथुरा का कोतवाल' भी कहते हैं। इनमें पश्चिम की ओर स्थित भूतेश्वर महादेव की बड़ी मान्यता है। यहां प्रतिदिन दर्शनार्थी आते हैं। यह शहर के परिक्रमा मार्ग के बीच में पड़ता है। आसपास के लोग या यहां से गुजरने वाला हर व्यक्ति इस मंदिर में दर्शन करके अपने दिन की शुरुआत करते हैं। प्राचीन स्थापत्य कला का यह अनूठा शिव मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के समय का बताया जाता है। साथ ही, यहां एक योगमाया का मंदिर भी है, जिसे लोग 'पाताल देवी' के नाम से पुकारते हैं।
शहर की पूर्व दिशा में पिप्पलेश्वर महादेव का मंदिर है। यह यमुना के किनारे श्यामघाट के निकट है। यह मंदिर भी बहुत पुराना है। यह मंदिर भी घनी आबादी के बीच में स्थित है। यहां प्रतिदिन लोग महादेव को जल चढ़ाने आते हैं। श्रावण मास में यहां विशेष उत्सव होता है।
मथुरा की दक्षिण दिशा में रंगेश्वर महादेव हैं। यहां यहां के मुख्य बाजार होली गेट के निकट है। यहां वर्षभर लोग महादेव दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को मंदिर में प्रवेश कर पाना भी बहुत मुश्किल होता है।
इसी प्रकार, शहर के उत्तर में गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर है यह मंदिर भी अति प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की बनावट देखने से ही इसकी प्राचीनता का अहसास हो जाता है। इस मंदिर में मौजूद महादेव की आदमकद प्रतिमा सभी को आकर्षित करती है। शायद ही महादेव की ऐसी प्रतिमा कहीं और देखने को मिलती है।
इस प्रकार से ये चारों महादेव यहां के कोतवाल कहलाते हैं। माना जाता है कि ये महादेव आदिकाल से मथुरा नगरी की रक्षा करते आ रहे हैं।
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