क्या आपने हाल ही में कोई पांच दिन तक चलने वाली ‘डेस्टिनेशन वेडिंग’ में भाग लिया है? अगर नहीं लिया है तो कोई बात नहीं। लेकिन, आपने सोशल मीडिया पर अंबानी की शादी के वीडियो क्लिप जरूर देखे होंगे।
भारतीय समृद्ध वर्ग के उदय, बढ़ती अर्थव्यवस्था, मशहूर हस्तियों के जश्न की चमक-दमक ने वैवाहिक संबंधों की पवित्रता और गरिमा से जुड़े प्राचीन मूल्यों को विकृत कर दिया है। मेगा रिसॉर्ट्स, फार्म हाउस, किराये के महलों या नौकायन जहाजों पर आयोजित होने वाले शादी समारोह नाटकीय आयोजनों में बदल गए हैं।
Read in English: Evil face of society is visible in wedding ceremonies…!
वेडिंग प्लानर टोनी भैया बताते हैं कि हफ्तों पहले नाच-गान की प्रैक्टिस भाड़े के कोरियोग्राफर शुरू करा देते हैं। सभी को नाचना है, बुड्ढे-बुढ़िया, दूल्हा-दुल्हन; एंट्री कैसे करनी है, कौन से कॉस्ट्यूम धारण करने हैं, सारे रिचुअल्स ड्रामेटिक अंदाज में, और एक-एक पल कैमरे में कैद, दूल्हा-दुल्हन तो अजनबी नहीं रहते क्योंकि प्री-वेडिंग फोटो शूट्स में अंतरंगता और नजदीकियां बढ़ चुकी होती है।
दूसरी ओर, मेहमान अलग दुविधा में फंसे रहते हैं। लिफाफे में कितने रुपये रखने हैं! सूट और टाई कौन से पहनने हैं, आभूषण व लिबास मैचिंग कराने हैं, किस खाने के स्टाल पर कितना समय देना है। सभी मेहमान अजीब द्वंद्व में फंसे नजर आते हैं।
वास्तव में, उदारीकरण और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की ताकतों ने भारतीय विवाहों को बहुत प्रभावित किया है। इन ताकतों ने नव धनाढ्य वर्ग के वारिसों को नई-नई मिली संपत्ति का दिखावा करने के लिए फिजूलखर्ची वाले आयोजनों में बदल दिया है। वेडिंग प्लानर और इवेंट मैनेजर लगातार रूसी डांसर, बॉलीवुड एंटरटेनर, हेलीकॉप्टर राइड, ड्रोन फोटोग्राफी, अद्भुत आतिशबाजी के साथ लेजर शो, अंतरराष्ट्रीय व्यंजन और पांच सितारा होटलों में निर्बाध शराब की आपूर्ति की व्यवस्था करते हैं।
समाज सुधारकों ने कम लागत पर विवाह समारोहों को सरल बनाने के लिए दशकों तक संघर्ष किया, लेकिन आज का दृश्य घृणित रूप से अश्लील और गंदा हो चुका है। पाखंडी खोखलेपन को दिखाने के लिए अकल्पनीय खर्च किया जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर कहती हैं कि विवाह की संस्था, जो कभी एक पवित्र और ज्यादा अंतरंग थी अब दिखावे के तमाशे में बदल गई है। सामाजिक दबाव और धन-दौलत दिखाने की इच्छा से प्रेरित भव्य समारोहों की निरंतर खोज ने इस पवित्र मिलन के वास्तविक सार को अस्पष्ट कर दिया है।
सरल व हार्दिक समारोहों के दिन चले गए हैं। उनकी जगह, हम गंतव्य विवाह या क्रूज वेडिंग्स देखते हैं जो हॉलीवुड के सबसे भव्य समारोहों को भी बौना बना देते हैं। ये आयोजन, अक्सर धूमधाम और दिखावे में सराबोर होते हैं। एक व्यक्तिगत और पवित्र प्रतिबद्धता को समृद्धि की प्रतियोगिता में बदल दिया जाता है।
सामाजिक टिप्पणीकार प्रो. पारस नाथ चौधरी के अनुसार आत्माओं के मिलन से ध्यान हटाकर इस अवसर को भव्य बना दिया गया है। इसमें अत्यधिक खर्च और धन का अत्यधिक प्रदर्शन नया मानदंड बन गया है। नकली संस्कृति का आकर्षण भारतीय शादियों के ताने-बाने में समा गया है। आध्यात्मिक महत्व से ओतप्रोत पुराने रीति-रिवाज अब दिखावे के लिए आयोजित किए जाते हैं।
स्कूल की शिक्षिका मीरा खंडेलवाल कहती हैं कि हल्दी समारोह या महिला संगीत के लिए नृत्य, वेशभूषा, माहौल व बहुत बड़े आयोजन होते हैं। इन पर दुल्हन के माता-पिता को बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है। वह कहती हैं कि सामाजिक अपेक्षाओं के भंवर में फंसे दूल्हा-दुल्हन एक कठोर ढांचे के अनुरूप ढलने के लिए दबाव महसूस करते हैं, जो वास्तविक प्रेम और संगति पर भौतिक धन को प्राथमिकता देता है।
मैसूर की सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता गुप्ता कहती हैं कि परंपराओं की विरासत को एक व्यंग्य में बदल दिया गया है, जहां वास्तविकता के बजाय सतही प्रदर्शन पर जोर दिया जाता है। वह कहती हैं, "यहां तक कि तथाकथित 'प्रेम विवाह', जिन्हें कभी प्रगतिशील विचारों के प्रतीक के रूप में मनाया जाता था, इस भौतिकवादी संस्कृति के प्रभाव से कलंकित हो गए हैं। अंतर्जातीय विवाह, जो एकता की दिशा में एक साहसिक कदम होना चाहिए, अक्सर पुराने रीति-रिवाजों और धन के असाधारण प्रदर्शन का पालन करने की आवश्यकता से प्रभावित होते हैं। दो व्यक्तियों के मिलन से ध्यान हटकर अवसर की भव्यता पर चला जाता है। इससे सार्थक संबंधों के बजाय उपभोक्तावाद का चक्र चलता रहता है।"
इस भव्य जीवनशैली के परिणाम जोड़े से कहीं आगे तक फैले हुए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं कि पर्याप्त संसाधनों के बिना परिवार या तो सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं या अपने आस-पास दिखाई देने वाले धन के शानदार प्रदर्शन का अनुकरण करने के लिए कर्ज में डूब रहे हैं। दहेज और शादी के खर्चों का वित्तीय बोझ आसमान छू रहा है। खासकर उच्च मध्यम वर्ग के परिवारों में, कुछ खर्च खगोलीय आंकड़ों तक पहुंच रहे हैं। इस बीच, व्यवसायी अपने धन का दिखावा ऐसे समारोहों पर अत्यधिक राशि खर्च करके करते हैं जो वैवाहिक स्थायित्व की कोई गारंटी नहीं देते हैं।
अति की यह संस्कृति न केवल गहरी असमानता को रेखांकित करती है, बल्कि वैवाहिक प्रतिबद्धता की सतही समझ की पोल भी खोल देती है। हिंदू विवाह की पवित्रता, जिसका मतलब परिवार और समुदाय की उपस्थिति में बना एक पवित्र बंधन होना है, भव्य समारोहों की अश्लीलता से अपमानित हो रही हैं।






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