वर्ष 2024 में सावन माह की शिवरात्रि का पर्व भक्तिभाव के साथ सम्पन्न हो चुका है। हिन्दू अनुयायियों ने पूरे भक्ति व उल्लास के साथ महादेव का रुद्राभिषेक पूर्ण किया। इस साल लगभग साढ़े चार करोड़ कांवड़िये कांवड़ यात्रा के व्रत को पूर्ण करने के लिए हरिद्वार से गंगा का पवित्र जल लेकर अपने गंतत्व पर पहुंचे और अपने आराध्य शिव को अर्पित किया।
यहां तक तो सब सही, लेकिन, कांवड़ियों की यात्रा के पूर्ण होने पर हरिद्वार में लगभग साढ़े छह हजार टन गंदगी सर्वत्र व्याप्त करके प्रशासन के ऊपर सफाई के व्यय का बहुत बड़ा दायित्व भी ये छोड़ आए। इस वर्ष की कांवड़ यात्रा में पहली बार कुछ शिवभक्तों ने कांवड़ के वास्तविक पर्याय को इस रूप में अभिव्यक्त किया। वे अपने वृद्ध माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार से विभिन्न शिवालयों में दर्शन कराने ले गए। ऐसे भक्तों ने शिव से सही अर्थ में आशीर्वाद प्राप्त किया।
इस बार कांवड़ यात्रा का एक दुखदायी पहलू यह रहा कि सम्पूर्ण भारत के लगभग पांच सौ युवा कांवड़िये आकस्मिक त्रासदी, यथा - रेल से कटकर, सड़क दुर्घटना, भीषड़ गर्मी, तीव्र बारिश, पहाड़ों में टूटन, नदी में डूबकर, आपसी झगड़े, हृदयाघात या विद्युत करंट आदि से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए।
यात्रा तो समाप्त हो चुकी है लेकिन अब एक बार फिर इस यात्रा का पुनरावलोकन करने की जरूरत है। अब वक्त आ गया है कि कांवड़ यात्रा के ऊपर छाए अंध विश्वास के बादलों को साफ किया जाए। भटके हुए युवावर्ग को कांवड़ यात्रा के वास्तविक अर्थ से अवगत कराया जाए। साथ ही, भावी पीढ़ी में अपने माता-पिता के प्रति आदर व श्रृद्धा का भाव भी जाग्रत किया जाना चाहिए।
यदि हमारे युवावर्ग ने अपने माता-पिता का आदर हृदय से करना प्रारम्भ कर दिया तो स्वयं ही शिव भक्ति सार्थक हो जाएगी और शिव की कृपा के लिए उनको शिवालयों में भटकना नहीं पड़ेगा। सही कहा गया है कि माता-पिता के चरणों में ही तीनों धाम होते हैं। इस तथ्य का ज्ञान यदि आज के सभी युवाओं को हो जाए तो निश्चित रूप से भारत में रामराज्य स्वयं स्थापित हो जाएगा।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)
Related Items
चौंकानेवाली रही है पिछले दशक में भारत की विकास यात्रा
भगवान शिव की महिमा और सावन का महीना...
गंगा-जमुनी तहज़ीब की आड़ में भारत की आत्मा पर वार था ‘पहलगाम’