संसद के हर सत्र में तार-तार होती गरिमा, करने होंगे कठिन उपाय


लोकतंत्र में संसद का अस्तित्व एक मंदिर सदृश है, जिसमें प्रवेश करते ही सकारात्मक विचार स्वतः उत्पन्न होने चाहिए। संसद सत्तापक्ष को जनता के हितार्थ कार्य करने के लिए निर्देशित करती है तथा प्रस्तावित योजनाओं पर पक्ष व विपक्ष को अपना मत रखने का भी पूर्ण अधिकार प्रदान करती है।

यह एक खेद का विषय है कि इन दिनों सदन के सत्रों में चर्चा का माहौल स्थापित नहीं हो पाता है और इसमें दीर्घ गतिरोध उत्पन्न होते रहते हैं। सदन को संचालित करने के लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करने की जरूरत है, जिसमें दोनों पक्ष देशहित को सर्वोपरि रखते हुए सकारात्मक चर्चा में अपना योगदान दे सकें। सदन के सदस्यों को सदन की गरिमा तार-तार करने से बचना चाहिए। जनता अपने प्रतिनिधियों को इसी आशा से समर्थन देकर चयनित करती है कि उनके पास राजनैतिक ज्ञान तथा जनता के हितार्थ कार्य करने की निपुणता तो अवश्य ही होगी। इसके विपरीत, यह देखा जाता है कि सांसद के रूप में नामित होने के पश्चात कई सांसद तो कभी भी चर्चाओं में भाग लेते नहीं दिखते। उनका कार्य केवल अपने दल के नेता के निर्देशों का समर्थन करते हुए संसदीय व्यवस्था में विघ्न उत्पन्न करना ही होता है।

संसद की ऐसी स्थिति वास्तव में निराशाजनक है। अब समय आ गया है कि पुराने चले आ रहे संसदीय नियमों में परिवर्तन किया जाए। इन परिवर्तनों के अन्तर्गत इस प्रकार की व्यवस्था की जाए कि जिस दिन भी संसद अपनी निर्धारित जिम्मेदारियों को पूरा न करें तो उनके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। यदि ऐसा करने पर भी उनके व्यवहार में परिवर्तन न हो, तो उन्हें पूर्णतया क्षतिपूर्ती का दायित्व वहन करना चाहिए।

सांसद बनने के लिए उसकी योग्यता में कम से कम एक बार विधायक पद पर चयनित होकर संसदीय मर्यादा का उल्लघंन न करना भी शामिल होना चाहिए। सांसदों के अमर्यादित व्यवहार के कारण देश को करोड़ रुपयों की हानि होती है। यह धन जनता के अथक परिश्रम के प्रतिफल स्वरूप होता है। इसको सरकार कर के रूप में एकत्र करती है। उस धन पर सांसद व संसदीय कार्यवाही के अन्तर्गत मात्र व्यंग्य, छींटाकशी आदि में समय व्यतीत करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वाह करने में पूर्णतया विफल होना बेहद शर्मनाक है।

संसदीय सदस्यों की कार्यप्रणाली को पूरा विश्व देखता है। यदि सदन सुचारू रूप से संचालित नहीं हो रहा होता है तो उसके लिए दोनों पक्ष उत्तरदायी होते हैं। अत: अब समय आ गया है कि इस दिशा में जोर-शोर से प्रयास किए जाएं।

(लेखक आईआईएमटी विश्विद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)



Related Items

  1. भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष कब बनेगा बेहतरीन विकल्प?

  1. बिहार में चुनाव, सियासी दंगल या लोकतंत्र की अग्नि परीक्षा!

  1. विविधता में ही पनपती हैं लोकतंत्र की गहरी जड़ें




Mediabharti