भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष कब बनेगा बेहतरीन विकल्प?


भारतीय राजनीति का रंगमंच और उस पर विपक्षी नेताओं का जलवा, यह कहानी किसी मसाला फिल्म से कम नहीं है! कांग्रेस के ‘युवराज’ के बयान आग की तरह फैलते हैं, मगर जब सच की कसौटी पर तौले जाते हैं, तो कई बार झूठ भी शरमा जाता है।

भाजपा इन्हें ‘झूठ का सौदागर’ कहकर चिढ़ाती है, सहयोगी सबूत मांगते हैं, और जनता सोच में पड़ जाती है! क्या ये वाकई सत्यवादी हरीशचंद्र हैं, या फिर हवा-हवाई कहानियों के बादशाह? आइए, विपक्ष द्वारा पिछले 10 वर्षों के अभियानों में गोता लगाएं और देखें कि कितने आरोपों में कितना दम है!

साल 2018-19 में राफेल डील को लेकर ऐसा बवंडर मचा कि ऐसा लगा जैसे देश का सबसे बड़ा घोटाला पकड़ा गया! ‘चौकीदार चोर है’ का नारा गूंजा, अनिल अंबानी पर फायदे का इल्ज़ाम लगा, और दाम बढ़ाने की बातें उछलीं। मगर सुप्रीम कोर्ट ने सारे दावों को हवा में उड़ा दिया। ‘फ्यूचर पीएम’ को माफी मांगनी पड़ी, लेकिन 2025 में भी वह राफेल का भूत पकड़कर बैठे हैं, जबकि सीएजी और कोर्ट ने डील को ‘क्लीन चिट’ दे दी। भाजपा ने तो उन्हें ‘विदेशी रक्षा कंपनियों का मोहरा’ तक कह डाला। अब यह जिद है या जुनून!

विपक्ष का सेना से जुड़ा रिकॉर्ड भी कम मसालेदार नहीं है। साल 2017 में सर्जिकल स्ट्राइक को ‘नकली’ कहकर उन्होंने ऐसा तीर चलाया कि देश का खून खौल गया। बाद में जनता और सेना के गुस्से के आगे उन्हें बैकफुट पर आना पड़ा। फिर 2019 में पुलवामा हमले को लेकर साजिश का सिद्धांत गढ़ा, बिना सबूत के कि मोदी ने 40 जवानों की शहादत का ‘फायदा’ उठाया है। साल 2025 में ऑपरेशन सिंदूर पर भी तंज कसा गया, दावा किया गया कि वायुसेना के हाथ बंधे हैं। मगर एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने साफ कहा, "यह सरासर झूठ है!" किरेन रिजिजू ने कहा, "झूठ बोलने की भी लिमिट होती है!"

युवराज की कहानियों का आलम यह है कि सच और झूठ का फर्क ही मिट जाता है। हाल ही में उन्होंने दावा किया कि अरुण जेटली ने 2020 में उन्हें किसान कानूनों पर ‘धमकाया’। अरे भाई, जेटली तो 2019 में ही अलविदा कह चुके थे! फिर 2020 में लद्दाख में चीन ने ‘2,000 वर्ग किमी जमीन हड़पी’ का दावा भी सुरक्षा विशेषज्ञों ने खारिज कर दिया। उनके लिए ये सब शायद ‘क्रिएटिव स्टोरी टेलिंग’ का हिस्सा है, लेकिन जनता और भाजपा को ये मिर्ची की तरह चुभते हैं।

साल 2024-25 में कर्नाटक के महादेवपुरा में ‘1.5 लाख फर्जी मतदाता’ का शोर मचाया, मगर चुनाव आयोग ने इसे ‘इग्नोर’ किया। जांच में छोटी-मोटी गड़बड़ियां मिलीं, पर कोई बड़ा घपला नहीं। फिर इतिहास को मरोड़ने का शौक भी उन्हें खूब भाता है। साल 2019 में ‘सारे मोदी चोर हैं’ कहकर मुकदमा झेला, और सावरकर को ‘कायर’ बताकर जनता का गुस्सा मोल लिया। कोर्ट, जनता, और सोशल मीडिया, सबने उनकी खिंचाई की!

कांग्रेस के समर्थक कहते हैं कि वह सत्ता से डरते नहीं हैं और ‘सच’ बोलते हैं। मगर बार-बार झूठ पकड़े जाने से उनकी छवि पर अब बट्टा लग चुका है। शरद पवार जैसे सहयोगी भी उनकी बातों से किनारा कर रहे हैं। कोर्ट और चुनाव आयोग ने कई बार उनके दावों में छेद निकाले, फिर भी विपक्षी नेताओं का जोश कम नहीं हुआ है।

तो क्या इंडिया ब्लॉक के नेता खुद अपनी कहानियों पर यकीन करते हैं, या ये सब कांग्रेस के संकट को छिपाने की चालबाजी है? उनकी बातों में जोश है, जुनून है, मगर सबूतों का अकाल है। जनता सोच रही है कि क्या ये नौटंकी है, या फिर ‘लीडर ऑफ द ऑपोजिशन’ वाकई बदलाव का कोई सपना देख रहे हैं? जवाब तो वक्त ही देगा, लेकिन तब तक राहुल का यह चटपटा अंदाज़ राजनीति का मज़ा दोगुना करता रहेगा! दरअसल, झूठ भी अगर बड़ी शिद्दत से निरंतर बोला जाए तो सच को भी अपनी सच्चाई पर ‘डाउट’ होने लगता है।

विपक्ष जब तक एक ‘सिंगल प्वाइंट एजेंडा’ लेकर नफरत और द्वेष की राजनीति करता रहेगा तब तक दाल नहीं गलेगी। इंडिया ब्लॉक को विकल्प बनने की चाहत और बेहिसाब तड़प दिखानी होगी और उसके लिए रणनीति बनानी होगी। हर अहम मुद्दे पर राहुल गांधी हमें यह बताएं कि वह कैसे किसी समस्या को ‘डील’ करते हैं, उनके तरकश में कौन-कौन से बाण होते है। मसलन, ट्रंप टैरिफ की चुनौती से डील करने के लिए उनकी वैकल्पिक योजना क्या होती। संसदीय प्रणाली में विपक्ष को विकल्प की भूमिका निभानी चाहिए, न कि सिर्फ हताशा, निराशा, कटुता की राजनीति करनी चाहिए।



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