श्रीमद् भागवत के वर्णन अनुसार द्वापरयुग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज करते थे। उनका एक आतातायी पुत्र कंस था और उसकी एक बहन देवकी थी। देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ।
कालांतर में, कंस ने अपने पिता को कारगर में डाल दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया। एक आकाशवाणी के अनुसार, कंस की मृत्यु उसके भानजे यानी बहन देवकी की आठवीं संतान के हाथों होनी थी। ऐसा जानकर कंस ने अपनी बहन और बहनोई को पिता के साथ ही मथुरा के कारगर में कैद कर दिया और एक के बाद एक देवकी की सभी संतानों को मार दिया।
आठवीं संतान के रूप में कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ तब कारागृह के द्वार स्वतः ही खुल गए और सभी सिपाही निद्रा में चले गए। वासुदेव के हाथों में लगी बेड़ियां भी खुल गईं।
दूसरी ओर, गोकुल में वसुदेव के मित्र नन्द की पत्नी यशोदा को भी संतान का जन्म होने वाला था। वसुदेव अपने पुत्र को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े। उफनती यमुना को पार करते हुए श्रीकृष्ण को सिर पर सूप में लिटाकर गोकुल पहुंच गए। मथुरा में युवावस्था तक श्रीकृष्ण ने प्रेम का संदेश देते हुए तमाम लीलाएं की और फिर वह मथुरा को छोड़ कर चले गए।
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