थॉमस अल्वा एडिसन को काम करने का अजीबोगरीब नशा था। वह एक बार जब अपनी प्रयोगशाला में घुस जाते थे, तो बाहर निकलने का नाम ही नहीं लेते थे। उनकी इस आदत से उनकी पत्नी बहुत चिढ़ी-चिढ़ी सी रहती थीं।
एक बार जब एडिसन काफी दिनों तक प्रयोगशाला में घुसे और बाहर निकले ही नहीं। आखिरकार, जब वह बाहर निकले तो उनकी पत्नी ने उन्हें समझाते हुए कहा, ''तुम रात-दिन काम में लगे रहते हो। कभी तो छुटटी कर लिया करो।''
''लेकिन, छुटटी लेकर मैं जाऊंगा कहां।?'' एडिसन ने जवाब दिया।
''जहां तुम्हारा मन चाहे”, पत्नी ने कहा।
''अच्छा! तो फिर मैं वहीं चला जाता हूं,' यह कहकर एडिसन फिर से सीधे अपनी ‘प्रिय’ प्रयोगशाला में घुस गए।
एडिसन के काम करने के जज्बे को एक अन्य घटना से भी समझा जा सकता है। बात उन दिनों की है जब एडिसन फोनोग्राम बनाने में व्यस्त थे। इसी बीच भारी-हल्के स्वरों में एक मशीन से निकलने वाली आवाज उनके सामने समस्या बनकर खड़ी हो गई। उन्होंने यह गुत्थी सुलझाने का काम अपने एक सहायक के सुपुर्द कर दिया।
दो साल तक उस पर काम करने के बाद वह सहायक एडिसन के पास आया और बोला, ''मिस्टर एडिसन, मैंने आपके हजारों डॉलर और अपने जीवन के दो साल इस काम में खपा दिए और निकला कुछ नहीं। अगर कोई हल होता तो मैं अब तक निकाल लेता। मैं इस्तीफा देना चाहता हूं।''
इतना कहकर उसने इस्तीफे की दरखास्त एडिसन की मेज पर रख दी और विनम्रता से बोला, ''कृपया मेरा इस्तीफा स्वीकार कीजिए।''
एडिसन ने एक क्षण भी सोचे बगैर इस्तीफे का कागज फाड़ दिया और बोले, ''मैं तुम्हारा इस्तीफा नामंजूर करता हूं।''
क्षणभर रुककर, उसे समझाते हुए एडिसन ने कहा, ''जॉर्ज, मेरा विश्वास है कि हर समस्या, जो ईश्वर ने हमें दी है, उसका हल उसके पास है। हम भले ही उसे न खोज सकें, मगर किसी न किसी दिन, कोई न कोई उसे जरूर ढूंढ निकालेगा। वापस जाओ और कुछ और मेहनत करो।''






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