हरिद्वार में आयोजित होने वाले भव्य कुंभ मेले से पहले वृंदावन में मिनी कुंभ मेला का आयोजन किया जाएगा। इसका शुभारंभ आगामी 16 फरवरी से होगा और यह 28 मार्च तक लगेगा। इसकी तैयारियां कई कार्यदायी संस्थाओं द्वारा जोर-शोर से शुरू कर दी गई हैं।
कुंभ पर्व का सीधा सम्बन्ध-अमृत कलश से है। इसकी परम्परा बहुत प्राचीन है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है। इसके पीछे अजर-अमर होने के लिए ’अमृत’ प्राप्ति हेतु देव और दानवों के मिले-जुले प्रयत्न से समुद्र का मंथन किए जाने की गाथा है। समुद्र मंथन के फलस्वरूप क्षीर सागर से विष, वरुणी आदि 13 रत्नों की प्राप्ति के बाद श्री धन्वन्तरि अमृत से भरे हुए कुंभ को लेकर प्रकट हुए। इसी कुंभ को प्राप्त करने के लिए देव और दानवों में छीना-झपटी होने लगी। देवताओं के इशारे पर इन्द्र के पुत्र जयंत उस कलश को लेकर भागे। दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर उस कुंभ को छीनने के लिए दैत्य जयंत के पीछे-पीछे भागे। यह देखकर अमृत कलश की रक्षा के लिए देवगण भी दौड़ पड़े। चन्द्रमा ने उस कलश को छलकने और लुढ़कने से बचाया, सूर्य ने टूटने से तथा गुरु बृहस्पति ने कुंभ को असुरों के हाथ में जाने से बचाया।
ये भागा-भागी 12 दैव दिन यानी मनुष्यों के 12 वर्ष तक चलती रही। इस बीच, जयंत ने अमृत कलश को 12 स्थानों पर रखा जिनमें आठ स्थान स्वर्ग में और चार भारतवर्ष में हैं।
माना जाता है कि चन्द्र, सूर्य और गुरु बृहस्पति ने अमृत कुंभ की रक्षा की थी अतः कुंभ का आयोजन बृहस्पति, सूर्य व चन्द्र के ज्योतिषीय ग्रह राशि योग के अनुसार होता है अर्थात जिस समय गुरु, चन्द्र व सूर्य एक विशिष्ट राशि पर अवस्थित होते हैं तभी कुंभ से अमृत छलकने वाले चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन में कुम्भ पर्व का आयोजन प्रति 12 वर्ष बाद होता है।
श्रीधाम वृन्दावन में भी अमृत कलश स्थापना के बहुत से संदर्भ प्राप्त होते हैं। श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में कालियादमन लीला में इसका प्रमाण मिलता है। महाभारत में भी गरुड़ द्वारा अमृत कलश यहां लाने की कथा का वर्णन है। अतः वृन्दावन का कुंभ पर्व पुराण द्वारा प्रतिष्ठित है। यहां भी प्रति 12वें वर्ष में लघुकुम्भ का आयोजन होता है। कहा जाता है कि चारों कुंभों से पूर्व श्रीधाम वृन्दावन में कुंभ होता है जिसमें सन्त यहां आकर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली को नमन करके यहां से ही हरिद्वार कुंभ को प्रस्थान करते हैं।
यह कुंभ हरिद्वार में होने वाले कुंभ से एक माह पहले माघ शुक्ल बसन्त पंचमी से फाल्गुन शुक्ल एकादशी तक होता है। समुद्र मंथन के बाद कश्यप पत्नी सर्पों की मां कद्रु एवं गरुड़ की मां विनिता ने शर्त लगाई कि सूर्य के रथ के घोड़े की पूछ काली है या सफेद? कद्रु ने कहा काली है और विनिता ने कहा सफेद, शर्त के अनुसार जो भी हारेगी वो दूसरे की दासी बनकर सेवा करेगी। कद्रु ने छल किया, उसने अपने सर्प पुत्र को घोड़े की पूंछ से लिपट जाने को कहा, ऐसा ही हुआ। विनिता शर्त हार गई और कद्रु की दासी बनना पड़ा। विनिता के पुत्र गरुड़ को भी दास का कार्य करना पड़ा। उन्होंने एक दिन कद्रु से दासता से मुक्ति का उपाय पूछा। कद्रु ने कहा कि अगर तुम स्वर्ग से अमृत लाकर हमें दोगे तो हम तुम्हें दासता से मुक्त कर देंगे। गरुड़ अमृत लेने स्वर्ग चले गए। इन्द्र ने उनका प्रतिरोध किया किन्तु गरुड़ ने देवसेना को परास्त कर दिया और कलश को लेकर लौटने समय श्रीविष्णु ने उनको बिना अमृत पिए ही अजर-अमर होने का तथा अपने वाहन बनने का वरदान दे दिया।
पराजित इन्द्र ने गरुड़ से माफी मांगी और उनसे मित्रता करनी चाही, गरुड़ ने उन्हें बताया कि वह अमृत पिलाकर सर्पों को अमर नहीं बनाना चाहते हैं, वह तो केवल अपनी मां को दासता से मुक्ति दिलाना चाहते हैं। इसलिए जब मैं अमृत कलश को वहां रखूं तो आप छिपकर उसे उठा ले जाना। इस प्रकार मेरे मां की मुक्ति भी हो जाएगी और आपकी कार्यसिद्धि भी होगी। गरुड़ ने अमृत कलश को सर्पों को सौपते हुए उसे कुश पर रख दिया। अमृत पान करने से पहले स्नान करने के लिए सर्प जैसे ही दूर गए इन्द्र ने अमृत कलश पुनः हरण कर लिया।
श्रीवृन्दावन धाम अमृत कलश के स्पर्श के कारण कुंभस्थल बना ऐसा कहना उचित नहीं है। श्रीवृन्दावन तो श्रीकृष्ण से अभिन्न यानी नित्य अमृतमय श्रीप्रभु ने ही रस- कुंभ रूप, वृन्दावन को सम्पूर्ण आनन्द से मथ करके ही प्रकट किया है। श्रीवृन्दावन कुंभ भागवत सम्मत एक महान भागवत पर्व है। भारतवर्ष के जिन चार स्थानों पर कुंभ के आयोजन होते हैं वहां तो मात्र अमृत कलश से कुछ बृंदें ही छलकी थीं। किन्तु, ब्रज वृन्दावन में सुधा-धारा सर्वत्र प्रवाहमान रहती है। यहां अमृतधारा है वेणु वादन की, श्रीकृष्ण की लीलाओं की, कथाओं की, यहां का जल अमृत है और श्रीराधा रानी व श्रीकृष्ण रसामृत मूर्ति हैं। इस प्रकार यहां तो प्रेमामृत की धारा अनवरत बहती ही रहती है। यहां की प्रेम रस की एक भी छींट जहां पड़ जाती है वहीं प्रेम का उद्गार हो जाता है।
‘‘छलकत छींट जहां पड़ी तहां प्रेम उदंगार’’
निकुंज वृन्दावन में तो नित्य महाकुंभ पर्व बना रहता है। इसलिए वृन्दावन के कुंभ का विशेष महात्म्य है। वास्तव में कुंभ पर्व स्नान-दान धर्म में आस्था का पर्व है। इस अवसर पर स्नान का विशेष महत्व होता है।
‘‘सहस्र कार्तिके स्नानं माघे स्नान शतानि च।
वैशाखे नर्मदा कोटिं कुम्भ स्नानेन तत्फलम्।।
‘‘अश्वमेध सहस्त्राणि वाजपेय शतानि च।
लक्षप्रद्क्षिणा भूमेः कुम्भ स्नानेन तत्फलम्’’।।
अतः वृन्दावन में कुंभ-पर्व के अवसर पर विभिन्न मठ, मन्दिर, अखाड़े तथा सभी सम्प्रदाय के प्रतिनिधिगण महामिलन स्थल श्रीयमुना तीर पर एकत्रित होकर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। देश-विदेश से लाखों की संख्या में भक्तजन कुंभ स्नान के पुण्य फल की प्राप्ति के लिए यहां आते हैं। अनेक भक्तजन कल्पवास भी करते हैं तथा दान, पुण्य, कर अपने जीवन को धन्य मानते हैं। वास्तव में कुम्भ स्नान दान धर्म का महापर्व है जो हमें सांसारिक बन्धन से मुक्ति दिलाकर सद्गति प्रदान करता है। कुंभस्थल पर पवित्र हवन, यज्ञ, धर्म ग्रन्थों का पाठ, कथा, भागवत, अनुष्ठान, मंत्रोच्चारण से भक्तों में एक अभिनव धार्मिक एवं आध्यात्मिक सनातन धर्म हिन्दू जन मानस को जागृति उत्पन्न करने का व हिन्दू धर्मावलम्बियों को एक स्थान पर एकत्र करने का साधन मात्र है तथा अनेकता में एकता के प्रत्यक्ष दर्शन का उपयुक्त स्थान होता है।
‘‘धन्यो वृन्दावने कुम्भो, धन्यं वृन्दावनं महत्।
धन्याः कुम्भपरा जीवा, धन्य श्रीकृष्ण कीर्तनम्’’।।
इस साल 16 फरवरी से 28 मार्च तक यह कुंभ पर्व हरिद्वार में होने वाले कुम्भ से एक माह पूर्व में श्रीधाम वृन्दावन में आयोजित होगा। कुंभ के दौरान कथा-सत्संग का प्रसाद, भजन कीर्तन आदि का जन साधारण में धर्म-भक्ति, ज्ञान, सदाचार आदि का प्रचार प्रसार होता है।
इस वर्ष यमुनातट पर आयोजित कुंभ मेला श्रीधाम वृन्दावन में अति उच्य स्तर पर मनाया जाएगा। व्यवस्थाएं भी पहले वर्षों की अपेक्षा सामान्य से अधिक अच्छी हो रही हैं। आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर पुलिस और प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं।
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