पर्यावरण / मौसम

साल 2025 हिंदुस्तान के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया है क्योंकि दक्षिण पश्चिमी मानसून अपने वक़्त से पहले ही आ चुका है। इससे मुल्कभर में बहुत ज़रूरी राहत मिलने की उम्मीद है।

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सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी और एनजीटी की चेतावनियां अब वक़्त की पुकार हैं। हरे-भरे पेड़ों की कटाई पर नकेल कसना ज़रूरी हो गया है। शहरों के सीने में धड़कते ये पेड़ अब कंक्रीट की हवस के शिकार हो रहे हैं। वृंदावन, आगरा, हैदराबाद और मैसूर जैसे ऐतिहासिक शहरों में, जहां हरियाली कभी इबादत थी, आज वही पेड़ इंसानी लालच की ज़द में हैं...

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एक समय था जब गांवों की शांत सुबह से लेकर शहरों की शोरगुलभरी चहल-पहल तक, गौरैया हवाओं को अपनी खुशनुमा चहचहाहट से भर देती थीं। इन नन्हें पक्षियों के झुंड, बिन बुलाए मेहमान होने के बावजूद स्वागतयोग्य व अविस्मरणीय यादें बनाते थे। लेकिन, समय के साथ, ये नन्हीं दोस्त हमारी जिंदगी से गायब हो गई हैं। कभी बहुतायत में पाई जाने वाली घरेलू गौरैया अब कई जगहों पर एक दुर्लभ दृश्य और रहस्य बन गई है।

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हर साल लाखों पेड़ कागजों पर लगाए जाते हैं, फिर भी जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। केंद्र सरकार के वन विभाग की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 और 2023 के बीच भारत के वन क्षेत्र में 1,445 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई, जिससे देश का कुल हरित आवरण 25.2 फीसदी हो गया है।

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यमुना नदी की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने नदी की सफाई और शुद्धिकरण के लिए एक बड़ा कार्यक्रम प्राथमिकता के तौर पर शुरू करने का मन बना लिया है। इससे आगरा, मथुरा और वृंदावन समेत बृज मंडल के निवासियों में नई उम्मीद जगी है...

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अब यमुना सूखी और प्रदूषित रोग ग्रस्त है। अधिकांश शहरवासी मां यमुना के महत्व और योगदान से परिचित नहीं हैं। नजीर अकबराबादी भी मायूस होंगे यमुना की पीड़ा देखकर। बादशाह शाहजहां का तो कलेजा ही बैठ जाएगा नदी की दुर्दशा देख कर...!

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