धर्म के विस्तार और विविधता की खोज अनावश्यक है। यदि कुछ आवश्यक है तो वह है धर्म के तत्व की खोज, इसकी अनेकता में एकता की खोज तथा इसके परम सार की खोज।
धर्म के विस्तार और विविधता की खोज अनावश्यक है। यदि कुछ आवश्यक है तो वह है धर्म के तत्व की खोज, इसकी अनेकता में एकता की खोज तथा इसके परम सार की खोज।
Related Items
जीवन, धर्म और संस्कृति की संवाहिका है यमुना
धर्म के नाम पर झूठ और कट्टरता का ‘खतरनाक’ उदय
धर्म या विकास..? तीन-बच्चों के ‘आह्वान’ का स्वागत करें या विरोध..!