आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव न केवल आम आदमी पार्टी के लिए निर्णायक हैं, बल्कि यह चुनाव भारत के बदलते राजनीतिक परिदृश्य और विपक्षी एकता की दिशा को भी परिभाषित कर सकता है। चुनाव अभियान के आखिरी दौर में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को भारतीय जनता पार्टी की आक्रामक चुनावी रणनीति और सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है।
आप के लिए यह चुनाव राजनीतिक अस्तित्व और राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के बीच एक संतुलन साधने की परीक्षा है। दूसरी ओर, भाजपा न केवल आप के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि कांग्रेस जैसे अन्य विपक्षी दलों के बीच वोटों के विभाजन का भी फायदा उठाने की रणनीति पर काम कर रही है।
दिल्ली में एक दशक से अधिक समय से शासन कर रही आप ने अपने ‘दिल्ली मॉडल’ के जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में सुधार का दावा किया है। हालांकि, समय के साथ मतदाताओं में थकान, नेताओं की नाटकबाजी से उबाऊपन और पार्टी नेतृत्व के प्रति निराशा के संकेत उभरने लगे हैं। शराब घोटाले से जुड़ी अटकलों और पार्टी नेताओं की गिरफ्तारी ने इसकी छवि पर भी असर डाला है।
इसके अलावा, भाजपा अपने राष्ट्रवादी अभियान और आक्रामक प्रचार रणनीतियों के जरिए मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में लगी है। प्रयागराज कुंभ मेले के बाद हिंदू वोट बैंक को साधने की भाजपा की कोशिशों ने चुनावी माहौल को और गरमा दिया है।
भाजपा इन चुनावों को आप के गढ़ में सेंध लगाने के अवसर के रूप में देख रही है। पार्टी का ध्यान दिल्ली के शहरी मतदाताओं की सुरक्षा, स्थिरता और राष्ट्रवाद से जुड़ी चिंताओं पर है। बांग्लादेशी प्रवासियों के मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर भाजपा ने इसे चुनावी हथियार बना लिया है। इससे अल्पसंख्यक समुदायों का हाशिये पर जाना और हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो रहा है।
पार्टी के चुनाव प्रबंधन में आरएसएस का गहरा योगदान देखा जा रहा है। बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता और संगठनात्मक मजबूती भाजपा को बढ़त दिला सकती है। कालकाजी क्षेत्र के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने बताया, “हम इस बार रिकॉर्ड मतदान सुनिश्चित करने के लिए जुटे हैं। 2024 लोकसभा चुनावों के अनुभवों से हमने काफी कुछ सीखा है।"
कांग्रेस, जो दिल्ली में अपनी पुरानी जमीन फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है, भाजपा विरोधी वोटों में विभाजन का कारण बन सकती है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुस्लिम मतदाता इस बार भी एक होकर वोटिंग करेंगे और संभवतः आप के पक्ष में ही रहेंगे।
राजनीतिक टिप्पणीकार पीएन चौधरी का कहना है कि शराब घोटाले के बावजूद, आप की मुफ्त सुविधाओं की नीति अभी भी गरीब तबके को आकर्षित कर रही है। वहीं, इस बात की प्रबल संभावना है कि बिहार से आए मतदाता भाजपा के पक्ष में झुक सकते हैं।
अगर आप इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है, तो उसकी राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिकता और विपक्षी गठबंधन में उसकी भूमिका कमजोर हो सकती है। इंडी गठबंधन के लिए यह चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह है, जिससे यह स्पष्ट होगा कि विपक्ष भाजपा के मजबूत अभियान का मुकाबला करने में कितना सक्षम है।
दिल्ली का यह चुनाव सिर्फ स्थानीय राजनीति तक सीमित नहीं है। इसके नतीजे न केवल भारत की राजधानी में सत्ता का भविष्य तय करेंगे, बल्कि अन्य शहरी क्षेत्रों और आगामी राज्य तथा राष्ट्रीय चुनावों के लिए भी जनमत की दिशा तय करेंगे।
भाजपा के लिए यह जीत बिहार और अन्य प्रमुख चुनावों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। वहीं, आप की हार उसकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं और दिल्ली से परे विस्तार की संभावनाओं को झटका दे सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आप अपने शासन के आधार पर जनता का भरोसा बनाए रख पाएगी या भाजपा की आक्रामक रणनीति और विभाजित विपक्ष उसे सत्ता से बेदखल कर देगी।
यह चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन की नहीं, बल्कि भारत की सामाजिक और राजनीतिक दिशा को परिभाषित करने की लड़ाई है।
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