मथुरा में भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव को लेकर सभी वर्ग और धर्मों के लोग तैयारियों में जुटे हुए हैं। एक तरफ जहां हिंदू समुदाय जन्मोत्सव को दिव्य और भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है तो वहीं मुस्लिम समुदाय भी यहां अपना पूरा पारंपरिक योगदान दे रहा है।
गोकुल में सुबह जब कान्हा के जन्म की खुशियां मनाई जाएंगी तो बधाई गीत मुसलमान गाते हैं और शहनाई भी मुसलमान ही बजाते हैं। कान्हा की पोशाकों को तैयार करने की जिम्मेदारी भी ज्यादातर यही समुदाय निभाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी यह कारोबार चला आ रहा है और इस तरह मुस्लिम समाज के ये लोग समाज को सांप्रदायिक सौहार्द का अनवरत संदेश दे रहे हैं।
अल्लाह के ये बंदे श्रद्धा के साथ कृष्ण जन्मोत्सव के दिन ठाकुरजी के श्रृंगार में पहनाई जाने वाली पोशाकों के निर्माण में जुटे हुए हैं। इन पोशाकों की भारत के विभिन्न शहरों में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मांग है। मुस्लिम समाज के ये लोग भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक व मुकुट तथा श्रृंगार के सामान बनाने का काम अब से नहीं, बल्कि इनके पूर्वज भी इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण के आभूषण आदि बनाकर समाज में सौहार्द कायम रखने का काम करते आ रहे हैं।
एक मुस्लिम कारीगर के अनुसार वह 40 साल से यह काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि वह बहुत भाग्यशाली हैं कि उन्हें ठाकुरजी के कपड़े सिलने का काम मिला है। यह संदेश पूरे देश में जाना चाहिए। बांके बिहारी मंदिर स्थित मंदिर में मौजूद विग्रह करीब पांच फुट से ज्यादा ऊंचा है। उनकी पोशाक सिलने में पूरा एक महीना लगता है। एक पोशाक को बनाने में करीब पांच लोगों की मेहनत लगती है। इस काम में उन्हें सुकून मिलता है।
मथुरा में सौ से अधक कारखानों में पोशाक और मुकुट श्रृंगार का व्यवसाय होता है। अधिकांश कारीगर मुस्लिम समाज के ही हैं, जो दिन-रात भगवान श्रीकृष्ण के पोशाक और श्रृंगार का सामान तैयार करते हैं। यह इन लोगों की रोजी-रोटी का मुख्य साधन है। कान्हा के जन्मोत्सव का इन्हें बेसब्री से इंतजार रहता है। जन्माष्टमी से महीनों पहले से ही ये कारीगर भगवान श्रीकृष्ण की पोशाकों को तैयार करने में लग जाते हैं।
भगवान के मुकुट, गले का हार, पायजेब, बगलबंदी, चूड़ियां, कान के कुंडल जैसे आभूषणों को तैयार किया जाता है। तैयार होने के बाद इन्हें विदेशों में भी भेजा जाता है। इन पोशाकों के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड कनाडा, नेपाल और अफ्रीका से भी ऑर्डर आते हैं।
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