ऐसे हुई काल को टाल देने वाले 'महामृत्युंजय मंत्र' की रचना...


'महामृत्युंजय मंत्र' को मृत्यु टालने वाला मंत्र बताया गया है। इसकी रचना के पीछे भी एक रोचक कहानी है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मृकण्डु हमेशा शिव की भक्ति में लीन रहते थे। ऋषि मृकण्डु को भगवान शिव की कृपा से सभी चीजों का परम ज्ञान था, लेकिन संतान न होने के कारण वह हमेशा दुखी रहते थे। अपने दुख निवारण के लिए उन्होंने भगवान शिव की तपस्या करने का निर्णय लिया। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने ऋषि को एक तेजस्वी और परम ज्ञानी संतान होने का वरदान दिया।

हालांकि, भगवान शिव ने उन्हें यह भी बताया कि यह संतान अल्पायु होगी और इसकी मृत्यु कम उम्र में हो जाएगी। इसके बाद ऋषि मृकण्डु के घर पुत्र का जन्म हुआ जो पिता के समान कम उम्र से ही परम ज्ञानी और शिव भक्त था। ऋषि मृकण्डु ने अपने इस पुत्र का नाम ‘मार्कण्डेय’ रखा। थोड़ा बड़ा होने पर ऋषि ने अपने पुत्र को उसके अल्पायु होने के बारे में बताया तब मार्कण्डेय ने शिव तपस्या का प्रण लिया।

समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए। यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था। यमदूतों का मार्कण्डेय को छूने तक का साहस न हुआ और लौट गए। उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।

यमदूतों के खाली हाथ वापस लौटने पर यमराज ने स्‍वयं जाकर मार्कण्‍डेय को लाने का फैसला किया। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए। बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग से लिपट गए। यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा। एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं। शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए। उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?

महाकाल के प्रचंड रूप को देखकर यमराज भी थर-थर कांपने लगे। उन्होंने कहा, ‘प्रभु मैं आप का सेवक हूं। आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है।’ महाकाल का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले, “मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है। तुम इसे नहीं ले जा सकते।“ यम ने कहा, “प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। अब से मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा।“ महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए। उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है।

महामृत्युंजय मंत्र को इतना प्रभावशाली माना गया है कि इसके जाप मात्र से ही बड़े से बड़ा रोग खत्म हो जाता है। साथ ही, नियमित इस मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति भयमुक्त, रोगमुक्त जीवन चाहता है तो उसे ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करना चाहिए।

महाशिवरात्रि के दिन शिव पूजा में महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से आत्मविश्वास बढ़ता है, अनजाना भय खत्म होता है, मन को शांति मिलती है और विचार सकारात्मक होते हैं।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

मंत्र का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है, “भगवान शिव त्रिनेत्रधारी हैं। हम त्रिनेत्र वाले भगवान शिव का मन से स्मरण करते हैं। शिव हमारे जीवन को मधुर बनाते हैं, हमारा पालन-पोषण करते हैं। हे शिव! हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अमृत की ओर आगे बढ़ें।“



Related Items

  1. गुमराह करने वाली कहानी है इंदिरा और मोदी की तुलना

  1. अग्निदेव और उनकी ‘स्वाहा’ के साथ विवाह की कहानी

  1. श्री राम जननी व अदिति की अवतार ‘कौशल्या’ की दुर्लभ कहानी




Mediabharti