कोरोना काल में हम सब ने अपने आस-पास लोगों को ऑक्सीजन के सिलेंडर हासिल करने की जद्दोजहद में खूब देखा है। अब सवाल यह है कि जब हवा में इतनी ऑक्सीजन मौजूद है तो फिर कमी कहां होती है। आखिर कैसे मेडिकल ऑक्सीजन के सिलेंडर बनाए और भरे जाते हैं, ताकि हम ऐसी विपरीत परिस्थितियों में इस जीवनदायिनी गैस की कमी को पूरा कर सकें। तो, आइए जानते हैं मेडिकल ऑक्सीजन के उत्पादन की प्रक्रिया के बारे में...
हवा में मौजूद ऑक्सीजन को फिल्टर करने के बाद मेडिकल ऑक्सीजन तैयार की जाती है। इस प्रोसेस को ‘क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रोसेस’ कहा जाता है। इसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेशन के जरिये मॉलीक्यूलर एडजॉर्बर से ट्रीट कराया जाता हैं, जिससे हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन अलग हो जाते हैं। इसके बाद कंप्रेस्ड हवा डिस्टिलेशन कॉलम में आती है। यहां इसे "प्लेट फिन हीट एक्सचेंजर एंड एक्सपेन्शन टर्बाइन प्रक्रिया’ से ठंडा किया जाता हैं। इसके बाद, 185 डिग्री सेंटीग्रेट पर इसे गर्म करके डिस्टिल्ड किया जाता है।
जानकारी के लिए बता दें कि मरीजों को जो ऑक्सीजन दी जाती है, वह 98 प्रतिशत तक शुद्ध होती है।
ऑक्सीजन प्लांट में हवा से ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। इसके लिए ‘एकल एयर सेपरेशन’ की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके तहत पहले हवा को कम्प्रेस किया जाता है और फिर फिल्टर करके उसमें से सारी अशुद्धियां निकाल दी जाती हैं। इसके बाद फिल्टर हुई हवा को ठंडा किया जाता है। फिर इस हवा को डिस्टिल किया जाता है ताकि ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जा सके, जिसके बाद ऑक्सीजन लिक्विड बन जाती है और इसी स्थिति में ही उसे इकट्ठा किया जाता है।
फिलहाल, वर्तमान में इसे एक पोर्टेबल मशीन के द्वारा हवा से ऑक्सीजन को अलग करके मरीज तक पहुंचाया जाता है।
मेडिकल ऑक्सीजन को एक बड़े से कैप्सूलनुमा टैंकर में भरकर अस्पताल पहुंचाया जाता है। अस्पताल में इसे मरीजों तक पहुंच रहे पाइप्स से जोड़ दिया जाता है चूंकि हर अस्पताल में तो यह सुविधा नहीं होती है, इस वजह से अस्पतालों के लिए इस तरह के खास सिलेंडर बनाए जाते हैं। इन सिलेंडरों में ऑक्सीजन भरी जाती है और इनको सीधे मरीज के बिस्तर के पास तक पहुंचाया जाता है।
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