युगदृष्टा मनीषी थे पंडित श्री राम शर्मा आचार्य


भारत पुण्यभूमि कहलाती है। हजारों सालों से विभिन्न संतों, ऋषियों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और मनीषियों ने इस भूमि पर जन्म लिया है। मानवहित के लिए पुरुषार्थ किया है। ऐसे ही एक महापुरुष हैं, पंडित श्री राम शर्मा आचार्य। उनका समूचा जीवन राष्ट्र, अध्यात्म और विश्व कल्याण के लिए समर्पित रहा। "हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा", इस ध्येय के साथ ही उन्होंने हजारों मनुष्यों को युग निर्माण के लिए प्रेरित किया।

उत्तरप्रदेश में आगरा के समीप, आवंलखेड़ा गांव में श्री राम शर्मा आचार्य का जन्म हुआ। वह 20 सितम्बर 1911 को भागवत कथाकार पण्डित रूपकिशोर शर्मा के घर जन्मे। महज 15 वर्ष की अवस्था में उन्होंने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय से दीक्षा ली। यज्ञोपवीत धारण करने के दिन से श्री राम शर्मा आचार्य ने आजीवन सांध्यवन्दन के व्रत को निभाया। आध्यात्मिकता के प्रकाश से विश्व को आलोकित करने वाले इस मनीषी ने स्वयं को सुदीर्घ तप की आंच में रखा था। आध्यात्मिकता के साथ-साथ वह राष्ट्र में चल रही परिघटनाओं के प्रति प्रखर दृष्टि रखते थे। उनका युवामन पराधीनता की बेड़ियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। यहीं से स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी की शुरुआत हुई।

परावलम्बी राष्ट्र की पीड़ा ने श्रीराम शर्मा आचार्य को झकझोर दिया था। वह घरवालों के विरोध के बावजूद स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आजादी की लड़ाई में जेल गए। जेल में भी वह अन्य कैदियों को पढ़ाते और स्वयं अंग्रेजी सीखते। जेल में वह महामना मालवीय, स्वरूपरानी नेहरू एवं अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों के संपर्क में आए। जेल से निकलने के बाद भी उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया। भगत सिंह की फांसी के विरोध जुलूस में सक्रिय भूमिका निभाई। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में भाग लिया। बाद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में मिलने वाली राशि भी उन्होंने जनहित के लिए समर्पित कर दी।

पंडित श्री राम शर्मा आचार्य ने पूरे जीवनकाल के दौरान तीन हजार किताबें लिखी। उनके लेखन का दौर वर्ष 1935 से शुरू हुआ, जो उनके मृत्युपर्यन्त 1990 तक चला। मनुष्य जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा न है, जिनमें उनकी कलम न चली हो। व्यवहार, विचार, आहार, ध्यान, संयम, राष्ट्रीय जीवन, युवा, महीयसी महिलाओं, महापुरुषों, धर्म और प्रकृति जैसे विविध विषयों पर उन्होंने किताबें लिखी। वह अध्ययन को उन्नति का प्रमुख साधन मानते थे। किताबों के साथ-साथ, ‘स्व’ का भी अध्ययन करना उनका विचार था। आज उनकी लिखी पुस्तकों को हजारों लोग पढ़ते हैं। उल्लेखनीय है कि श्रीराम शर्मा आचार्य अखंड ज्योति पत्रिका भी निकालते थे। यह पत्रिका आज भी सर्वाधिक पढ़ी जाती है।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने गायत्री परिवार की स्थापना की। वह मनुष्य को अपने जीवन में दिव्यता का अनुभव कर, विचारों की शक्ति जानकर, युग-निर्माण में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करते थे। आज संपूर्ण देश में गायत्री परिवार के हजारों सदस्य हैं। इसका मुख्यालय हरिद्वार के शांतिकुंज में है। देश के कई स्थानों पर प्रज्ञापीठ की स्थापना की गई है। उपासना के माध्यम से वह मनुष्य को जीवन के उच्चतर लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होने को कहते हैं। "प्रखर-प्रज्ञा" और "सजल-श्रद्धा" के समक्ष आज हजारों लोग प्रणवत होते हैं।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के विचारों को पढ़कर, उन्हें आत्मसात कर, लाखों लोगों ने अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव किया। इन वेदमूर्ति का निधन 2 जून, 1990 को हरिद्वार में हुआ। उनके विचार आज भी मनुष्य का पथ प्रदर्शन करते हैं।



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