कांग्रेस में मिसफिट और भाजपा में असहज हैं शशि थरूर


ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े विश्व विजयी अभियान के पश्चात, प्रधानमंत्री की ‘गुड बुक्स’ में शामिल, और कांग्रेस हाईकमान की आंखों में किरकिरी करने वाले, डॉ शशि थरूर की केरल विधान सभा चुनावों में क्या भूमिका रहेगी। इसको लेकर दिल्ली से तिरुअनंतपुरम के सत्ता के गलियारों में तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं।

केरल में 2026 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और कांग्रेस सांसद शशि थरूर के भविष्य को लेकर चर्चा जोरों पर है। थरूर अपनी वाकपटुता और वैश्विक छवि के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में, ऑपरेशन सिंदूर के बाद उनकी वैश्विक पहल ने उनकी लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए। इससे बीजेपी नेतृत्व की तारीफ भी मिली। यह स्वाभाविक ही है कि अब लोग अंदाजा लगाएं कि थरूर केरल की राजनीति में क्या गुल खिलाएंगे।

अंग्रेजी में पढ़ें : Shashi Tharoor, Misfit in Congress, Uneasy in BJP...!

शशि थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की बात को अमेरिका, ब्राजील और पनामा जैसे देशों में मजबूती से रखा। इससे उनकी छवि एक राष्ट्रीय नेता की बनी, जिसे कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने सराहा। लेकिन, कांग्रेस में उनके रिश्ते नेतृत्व से तनावपूर्ण हैं। सोशल मीडिया और खबरों में दो संभावनाएं चर्चा में हैं: या तो थरूर केरल में कांग्रेस की कमान संभालेंगे, या फिर वह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।

कांग्रेस में थरूर की लोकप्रियता, खासकर तिरुवनंतपुरम जैसे शहरों में, उन्हें बड़ा नेता बनाती है। कुछ लोग चाहते हैं कि वह केरल कांग्रेस के अध्यक्ष बनें या मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार। केरल के पढ़े-लिखे और जागरूक वोटर, खासकर युवा, उनकी वैश्विक छवि पसंद करते हैं। लेकिन, उनकी आम जनता से दूरी और कुलीन छवि कांग्रेस के पुराने वोटरों को नाराज कर सकती है। कांग्रेस नेतृत्व भी उन्हें ज्यादा तवज्जो देने से हिचक रहा है, क्योंकि वह पार्टी लाइन से अलग राय रखते हैं।

दूसरी ओर, बीजेपी के साथ थरूर की नजदीकी की बातें चल रही हैं। ऑपरेशन सिंदूर के लिए उनकी तारीफ और बीजेपी के साथ काम करने से यह अटकलें बढ़ी हैं। सोशल मीडिया पर कुछ लोग कहते हैं कि बीजेपी थरूर को केरल में बड़ा चेहरा बना सकती है, जैसे जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद को इस्तेमाल किया। बीजेपी को केरल में पैर जमाने के लिए थरूर की ईसाई और नायर समुदाय में पकड़ और शहरी लोकप्रियता फायदेमंद हो सकती है। वह मुख्यमंत्री उम्मीदवार या राष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रवक्ता बन सकते हैं।

लेकिन, थरूर का बीजेपी में जाना मुश्किल लगता है। उनकी उदारवादी सोच और बीजेपी की विचारधारा में टकराव है। उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि उनके वोटरों को नाराज कर सकती है।

ज्यादा संभावना है कि वह कांग्रेस में रहकर अपनी ताकत बढ़ाएंगे और ऑपरेशन सिंदूर की लोकप्रियता का फायदा उठाएंगे। या फिर वह राजनीति छोड़कर राजनयिक या लेखन का रास्ता चुन सकते हैं, जैसा कि कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में इशारा दिया गया है।

केरल की राजनीति अभी अनिश्चित है। थरूर का अगला कदम कांग्रेस को शहरों में मजबूत कर सकता है या बीजेपी को केरल में नई ताकत दे सकता है। उनका फैसला केरल के चुनावी समीकरण बदल देगा।



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