वृंदावन की कुंज गलियां कर रही हैं कृष्ण का इंतजार


अब यह सिद्ध हो चुका है कि भगवान कृष्ण का जन्म 3228 ईसा पूर्व 18 जुलाई को हुआ था। यानी, आज से 5252 वर्ष पहले भगवान कृष्ण ने धरती पर अवतार लिया और वह 3102 ईसा पूर्व 18 फरवरी को अपने निज धाम गमन कर गए थे।

इस तरह, भगवान कृष्ण पृथ्वी पर 126 वर्ष आठ महीने और सात दिन रहे। उनके प्रपौत्र स्वामी बज्रनाभ ने कृष्ण के जन्मस्थान पर इसका अंकन भी कराया है। उसी के आधार पर यह सांख्यिकीय गणना की जाती है।

पं. अमित भारद्वाज बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण चंद्र देव के वंशज हैं। चंद्रमा का पुत्र बुध है और श्रीकृष्ण को चंद्र वंश में पुत्रवत जन्म लेना था। इसी कारण वह बुधवार में जन्मे। अष्टमी तिथि शक्ति का प्रतीक है। श्रीकृष्ण सर्वशक्ति संपन्न व स्वयम्भू है इसलिए अष्टमी तिथि को चुना गया। रोहिणी चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र व पत्नी है, इस कारण रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया। चंद्र देव को अभिलाषा थी कि नारायण जब मेरे वंश में जिस समय अवतार लें उस समय मैं उनका दर्शन कर सकूं। इस अभिलाषा को पूर्ण करते हुए नारायण ने रात्रि बेला में कृष्ण रूप में अवतार लिया। श्रीमद्भागवत व अन्य पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जिस समय पृथ्वी पर नारायण ने कृष्ण अवतार लिया, उसी समय आकाश में चंद्रदेव उदय हुए।

पौराणिक धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि कृष्ण जन्म के समय पृथ्वी से अंतरिक्ष तक वातावरण सकारात्मक हो गया था। प्रकृति अर्थात पेड़, पौधे पशु पक्षी हर्षित थे। सुर, मुनि, गंधर्व व किन्नर सभी प्रफुल्लित थे। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रभु श्रीकृष्ण ने योजनाबद्ध रूप से सुरम्य वातावरण में मथुरापुरी में जन्म लिया।

इस बार प्रभु श्रीकृष्ण के जन्म के 5252वें वर्ष में 26 अगस्त को रोहिणी नक्षत्रयुक्त अष्टमी तिथि है। रात्रि प्रहर जन्म उत्सव के समय वृष राशि में उच्च के चंद्रमा भी हैं। लेकिन, कृष्ण के पूर्वज चंद्र देव के पुत्र बुध का बुधवार नहीं है। एक अजब संयोग यह है कि इस बार 26 अगस्त को जन्माष्टमी सोमवार के दिन है। सोमवार को चंद्रवार भी कहा जाता है। सोम का पर्याय चंद्र है। यानी, प्रभु श्री कृष्ण का जन्मोत्सव अपने पूर्वज के वार अर्थात चंद्रवार को ही मनेगा।

अमित भारद्वाज आगे बताते हैं कि जन्माष्टमी पर गोकुल में कृष्ण जन्मोत्सव के पूर्व दिवस पर बालकृष्ण का छटी पूजन होता है। विदित हो कि किसी भी बालक का छटी पूजन जन्म के छटवे दिन होता है। लेकिन, गोकुल में जन्मोत्सव से पूर्व यह आयोजन होता है। पुष्टिमार्गीय वल्लभ कुल संप्रदाय के मंदिरों में भी यह परंपरा निभाई जाती। गोकुल में नंद किले के अलावा घर-घर में छटी पूजन होता है।

एक कहानी के अनुसार, मां यशोदा व नंद बाबा बालक के वात्सल्य में ऐसे मगन हो गए कि छटी पूजना ही भूल गए। जब बालकृष्ण का पहला जन्मदिन आया तब उनको याद आया कि लाला की छटी नहीं पूजी गई है। इसलिए, उन्होंने पहले जन्म दिवस से पूर्व कान्हा की छटी पूजा की। यह परंपरा आज भी गोकुल में परंपरागत रूप से मनाई जाती है।

भगवान कृष्ण का बचपन वृंदावन में बीता। यहां से 11 साल की उम्र में वह कंस का वध करने मथुरा चले आए और फिर वापस कभी वृंदावन नहीं लौटे।

वृंदावन की गलियों का इतिहास करीब पांच हजार साल पुराना है। अलग-अलग नामों वाली ये वही गलियां हैं, जहां कभी भगवान श्रीकृष्ण खेलते थे, रास रचाते थे, माखन चुराते थे और तरह-तरह की लीलाएं किया करते थे।

कृष्ण के बाल्यकाल की तमाम लीलाओं की साक्षी गलियां आज भी मौजूद हैं। इन गलियों के नाम दान गली, मान गली, तथा भूत गली हैं। यहां पर आज भी उसी काल का गोपेश्वर महादेव का मंदिर है। इसका विशद वर्णन श्रीमद् भागवद् में भी किया गया है। यहां श्रीकृष्ण और राधारानी की रासलीला को देखने के लिए भगवान शंकर आए थे।

एक गली का नाम दान गली है। इस गली से राधा और गोपियां दही बेचने निकलती थीं और भगवान कृष्ण उन्हें रोककर दही चुरा लेते थे। ये गली भी आज मौजूद है।

मान गली के बारे में कहा जाता है कि एक बार भगवान कृष्ण ने राधा के गुस्सा हो जाने पर उन्हें यहां मनाया था। यहां से वह सेवाकुंज पहुंच गईं। जहां भगवान ने उनकी चरण सेवा की थी। आज भी यहां वह चित्र मौजूद है तथा रात्रि में भगवान कृष्ण और राधारानी कुंज लीला करते हैं। कहा जाता है कि यहां मनुष्य तो क्या कोई पशु, पक्षी भी रात्रि में नहीं ठहर सकता है।

भक्तों की भीड़ बांके बिहारी के दर्शन करने को इन कुंज गलियों से होकर गुजरती है। वृंदावन के प्राण इन्हीं कुंज गलियों में बसते हैं। वृंदावन की हर गली, किसी न किसी, दूसरी गली से जुड़ी हुई है। यहां हर मोड़ और हर छोर पर किसी न किसी रूप में ठाकुरजी विराजमान हैं।

वृंदावन में सबसे ज्यादा भक्त बांके बिहारी मंदिर में जाते है। इस मंदिर के चारों ओर करीब 22 कुंज गलियां हैं। यहां उमड़ने वाली भारी भीड़ के चलते प्रदेश सरकार अब यहां पांच एकड़ जमीन पर एक भव्य कॉरिडोर बनाने जा रही हा। इसके बन जाने से भक्त बिना किसी असुविधा के बांके बिहारी मंदिर में दर्शन कर सकेंगे।

जन्माष्टमी के दिन कृष्णनगरी में जगह-जगह मंच बनाकर श्रीकृष्ण-राधा की लीलाओं का मंचन किया जाता है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान से प्रातः भव्य शोभायात्रा शुरू होती है, जिसके लिए शोभायात्रा मार्ग को आकर्षक रूप से सजाया जाता है। मुख्य मंदिर के चारों ओर रास्तों पर भव्यता लिए मनमोहक सजावट के साथ लोक कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते हुए निकलते हैं। साथ में, कृष्ण लीला की दुर्लभ झांकियां भी चलती हैं। झांकियों में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न रूपों को सजाकर प्रदर्शित किया जाता है।

नगर के प्रमुख चौराहों पर लोक कलाकारों की प्रस्तुतियां होती हैं। कई जगहों पर छोटे-छोटे मंचों पर भी लीलाएं होती हैं। लोक गायक अपनी कला से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को प्रस्तुत करते हैं। नजदीकी वृन्दावन व गोकुल समेत सभी तीर्थ स्थलों को इस अवसर पर भव्यता प्रदान की जाती है। आजकल युवाओं को आकर्षित करने के लिए सेल्फी पॉइन्ट भी बनाए जाने लगे हैं। यहां युवा अपनी सेल्फी लेते देखे जा सकते हैं। यहां बिना आये और बिना देखे जन्माष्टमी की भव्यता की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।



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