साहित्य / मीडिया

दुनिया में जब भी किसी ऐसे आंदोलन को याद करते हैं जिन आंदोलनों में मनुष्य अपने ऊपर थोपे गए कई बंधनों से मुक्ति के लिए एकजूट होता है तो उस आंदोलन का कोई न कोई गीत याद आने लगता है। यही वास्तविकता है कि कोई भी आंदोलन गीतों के बिना पूरा नहीं होता है। काव्य धारा के कई रूप हैं और वे कविता, नज्म़, गज़ल, गीत आदि के रूप में जाने जाते हैं। बल्कि यूं भी कहा जाए कि नारे भी अपनी काव्यत्मकता से ही यादगार बन पाते हैं। ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ आंदोलनों के लिए न मालूम कितने गीत लिखे गए। इस विषय पर कई शोध हुए हैं लेकिन तमाम तरह के शोधों के बावजूद ये लगता है कि वे उस दौरान लिखे गए सभी गीतों को समेट नहीं पाए।

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नई दिल्ली : हर साल सर्दियों के मौसम में नई दिल्ली पुस्तक मेला पुस्तक प्रेमियों, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रकाशकों, लेखकों, बुद्धिजीवियों के लिए एक नायाब अनुभव साबित होता है। इस वर्ष विश्व पुस्तक मेला अधिक शीर्षकों एवं विषयों तथा पढ़ने योग्य सामग्रियों के विशाल संकलन के साथ ज्यादा व्यापक है। मेले में बदलते समय के अनुरूप ई-पुस्तकें एवं इलेक्ट्रोनिक संग्रह भी दिखे तथा पुराने समय की छपाई वाली अच्छी पुस्तकें भी दिखीं। 

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नई दिल्ली : शलाका साहित्यकार एवं अप्रतिम विमर्शकार प्रेमचंद की पत्रिका 'हंस' के पुनर्संस्थापक राजेन्द्र यादव की जयंती पर तीसरे "राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान 2015" का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्सी सभागार में किया गया। इस बार का यह प्रतिष्ठित सम्मान-पुरस्कार प्रतिभाशाली युवा रचनाकार प्रकृति करगेती को हंस के जनवरी-2015 अंक में 'मुबारक पहला कदम' के अंतर्गत प्रकाशित कहानी "ठहरे हुए से लोग" को दिया गया। यह पुरस्कार हंस में किसी नवोदित लेखक की प्रकाशित कहानी पर प्रतिवर्ष दिया जाता है।

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आगरा : ब्रज मंडल हैरिटेज कंजरवेशन सोसायटी के तत्वावधान में बीते कुछ दिन से चर्चा का केंद्र बनी किताब ‘ताज महल या ममी महल…?’ का विमोचन किया गया। 

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‘उदित’ साहू के नाम से ख्यात वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार कामता प्रसाद साहू का गुरुवार रात को निधन हो गया। वह कुछ दिनों से बीमार थे। गुरुवार रात करीब नौ बजे घर में उन्होंने अंतिम सांस ली।

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राजभाषा संबंधी सांविधानिक और कानूनी उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने तथा संघ के सरकारी काम-काज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के एक स्वतंत्र विभाग के रूप में जून, 1975 में स्थापित राजभाषा विभाग विभिन्न उपायों द्वारा सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रगामी प्रयोग बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है|

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