धर्म, कला और संस्कृति

भारत में संन्यास की विशिष्ट परंपरा रही। जगत में रहते हुए भी वैराग्य के मार्ग का चुनाव करने वाले, संन्यासी कहलाते हैं। वे अपना समूचा जीवन, मनुष्य और समाज के निमित्त ही अर्पण करते हैं और दिव्यता की प्राप्ति के लिए भी साधनारत रहते हैं। ऐसे संन्यासियों के पास अपने कई प्रश्न लेकर सामान्य जन भी जाते हैं। संन्यासियों के आध्यात्मिक उपदेश और उनके कृतित्व का अवलोकन कर, मनुष्य मन का कई संदेह दूर हो जाता है। इससे जीवन यात्रा में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होता है। ऐसे ही एक संन्यासी का नाम है स्वामी पुरुषोत्तमानंद है। इनसे अधिसंख्य छात्र, युवा और साधक जन प्रेरणा लेते रहे हैं। इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए अबी सब्सक्राइब करें, महज एक रुपये में अगले पूरे 24 घंटों के लिए...

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जन्म लेने से पूर्व ही मनुष्य का ध्वनि से सहज संबंध स्थापित हो जाता है। यह संबंध मृत्युपर्यन्त जारी रहता है। मनुष्य के सामान्य अनुभव से यह सर्वविदित है कि गर्भस्थ शिशु भी विविध ध्वनियों को सुनकर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। जब यही ध्वनि निर्दिष्ट लय, ताल के साथ अनुभूतियों को व्यक्त कर रस उत्पन्न करे तो उसे संगीत कहते हैं। इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए अभी "सब्सक्राइब करें", महज एक रुपये में, अगले पूरे 24 घंटों के लिए...

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वृंदावन का नाम सुनते ही लोगों के मन में भगवान कृष्ण और राधा रानी का खयाल आता है, लेकिन यहां एक ऐसा मंदिर भी है जो भगवान श्रीकृष्ण का नहीं बल्कि महादेव शिव का है। इस मंदिर में महादेव कृष्ण की गोपी के रूप में विराजमान हैं और प्रतिदिन उनका महिलाओं की तरह सोलह श्रृंगार किया जाता है। पूरा आलेख पढ़ने के लिए अभी सब्सक्राइब करें, महज एक रुपये में, अगले पूरे 24 घंटों के लिए...

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संपूर्ण विश्व को शांति का संदेश देने वाले महात्मा बुद्ध के कैवल्य ज्ञान प्राप्ति के बाद पूरे देश में तेजी से उनके अनुयायी बढ़ गए थे। भारत के विभिन्न शक्तिशाली राजाओं ने महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को अपने साम्राज्य में प्रचारित किया। ...तो क्या महात्मा बुद्ध के चरण बुंदेलखण्ड भूमि पर भी पड़े होंगे? इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए अभी "सब्सक्राइब करें", महज एक रुपये में, अगले पूरे 24 घंटों के लिए...

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विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में भक्तों पर सोने-चांदी की पिचकारियों से टेसू के रंगों की बौछार की गई तो भक्त आनंद से झूम उठे। भक्ति और प्रेम का ऐसा रंग बरसा कि सब देखते ही रह गए। पूरा आलेख पढ़ने के लिए अभी सब्सक्राइब करें महज एक रुपये में, अगले पूरे 24 घंटों के लिए...

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विभिन्न लोक कलाओं के माध्यम से भारतीय मानस की रचनात्मकता और जीवन-दृष्टि की झलक मिलती है। लोककला का एक ऐसा ही रूप है, कठपुतली नृत्य। महाराष्ट्र के सिंधु दुर्ग गांव के निवासी परशुराम आत्माराम गंगवाने इस लोक कला के संरक्षण के लिए समर्पित हैं।

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