धर्म, कला और संस्कृति

धर्म के विस्तार और विविधता की खोज अनावश्यक है। यदि कुछ आवश्यक है तो वह है धर्म के तत्व की खोज, इसकी अनेकता में एकता की खोज तथा इसके परम सार की खोज।

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भगवान हमारी मुसीबतों को कई बार बेहद हल्का करके हमें उबार लेता है। लेकिन, हम उसके शुक्रगुजार होने के बजाय उसी पर दोषारोपण करने में लगे रहते है। जबकि, हम वही काट रहे होते हैं जो हमने बोया है। इसी नजरिये को समझाते हुए हम यहां आपको यह कहानी सुना रहे हैं।

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बात उस समय की है जब भगवान बुद्ध मृत्यु शैया पर पड़े थे। पास में बैठा हुआ उनका शिष्य आनंद उनकी सेवा कर रहा था। तभी, उनका एक दूसरा शिष्य भद्रक वहां रोते हुए आया।

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अहिंसा जीवन की आधार भूमि है। अहिंसा के अभाव में त्राहि-त्राहि है और अहिंसा के सद्भाव में ही त्राण है। वस्तुत: व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और राष्ट्र इसके अभाव में टिक ही नहीं सकते। इसलिए, सभी धर्मों ने इसे एक स्वर से स्वीकार किया है।

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धर्म के विस्तार एवं विविधता की खोज अनावश्यक है। यदि कुछ आवश्यक है तो वह है धर्म के तत्व की खोज, इसकी अनेकता में एकता की खोज और इसके परम सार की खोज।

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प्रदर्शनकारी कलाओं में महिलाओं की पहचान, मुद्दे एवं विवेचन विषय पर पिछले दिनों मुंबई में एक दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन का आयोजन मणिबेन नानावती महिला महाविद्यालय के महिला अध्ययन केंद्र एवं हिंदी विभाग तथा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में किया गया था।

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