संपादकीय

वर्ष 2024 में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखकर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों ही प्रसन्न हैं। जनता ने इन चुनावों में सभी को प्रसन्न होने का अवसर दिया है। लोकतंत्र की यही विशेषता है कि इसमें जनता का निर्णय ही सर्वोपरि होता है।

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भारत देश में लोकतांत्रिक शासन है। इसका अभिप्राय यह है कि यहां जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन करने का प्रावधान है। लेकिन, 75 साल से ज्यादा के आधुनिक भारतीय इतिहास में नेताओं के दल-बदल के चलते कई बार सरकारें अस्थिरता के भंवर में फंसती रही हैं।

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साल 2024 के लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण सम्पन्न हो जाने के बाद अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई एनडीए सरकार का शपथग्रहण समारोह भी सम्पन्न हो चुका है। भाजपा ने मोदी जैसे व्यक्तित्व के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और चुनाव परिणामों से यह पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है कि देश में मोदी के समकक्ष नेतृत्व देने वाला फिलहाल कोई अन्य नेता जनता को स्वीकार्य नहीं है।

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बीजेपी का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 10 सालों के दौरान लगातार देश व जनता के उत्थान के लिए कठिन परिश्रम किया, जिसके फलस्वरूप उसे यह आशा थी कि जनता उसके उम्मीदवारों को 400 सीटों पर विजयश्री दिलाने में पूर्ण सहयोग करेगी...

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चुनावी जीत हासिल कर लेने के बाद नेता इस तथ्य को पूरी तरह विस्मृत कर देते हैं कि अब उनको अगले पांच साल के बाद एक बार फिर से उसी जनता-जनार्दन के समक्ष जाना होगा जिनके सहयोग से वर्तमान में उनकी नैया पार हो पाई है...

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साल 1925 में हिन्दुत्व की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित एक दल जनसंघ का अवतरण हुआ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं ने जनसंघ को सुदृढ़ करने के लिए अथक प्रयास किए और आज वही जनसंघ भाजपा के रूप में भारतीय राजनीति के मैदान में एक बड़े खिलाड़ी के रूप में मौजूद है...

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