‘मुक्त छंद’ छंद मुक्त कविता नहीं है। जब हम मुक्त छंद कहते हैं तो हम छंद की परिधि में होते हैं। 'परिमल' की भूमिका में निराला ने एक मार्मिक बात कही कि मुक्त छंद से काव्य में एक स्वाधीन चेतना आती है।
Read More‘मुक्त छंद’ छंद मुक्त कविता नहीं है। जब हम मुक्त छंद कहते हैं तो हम छंद की परिधि में होते हैं। 'परिमल' की भूमिका में निराला ने एक मार्मिक बात कही कि मुक्त छंद से काव्य में एक स्वाधीन चेतना आती है।
Read Moreहिन्दी के मूर्धन्य कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को साहित्य जगत का सिरमौर बनाने में अकेले कलकत्ता के सेठ महादेव प्रसाद मतवाला का जो योग है, उसे भुलाया नहीं जा सकता है।
Read Moreबंकिमचंद के दोस्त दीनबंधु मित्र बड़े विनोदी स्वभाव के थे और कभी-कभी उनसे भी विनोद करने से न चूकते थे।
Read Moreबांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध कवि और नाटककार गिरीश चन्द्र घोष के एक अच्छे दोस्त थे, जो बड़े रईस थे पर उनमें सौजन्यता नाम की कोई चीज नहीं थी। सदा पैसे के दर्प से चूर रहते थे।
Read Moreउन दिनों आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी शांति निकेतन में थे। उस समय उनके पास एक कार भी थी। मगर वह उसे बहुत धीमे चलाते थे। उसकी चाल इतनी धीमी होती कि साथ में बैठने वाले की तबीयत ऊब जाती थी। फिर भी द्विवेदी जी अपने आगंतुकों को अपनी गाड़ी से सैर जरूर कराते थे।
Read Moreमशहूर साहित्यकार और शिक्षाविद आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के बारे में यह बात प्रसिद्ध थी कि वह बहुत ही कम बोलते थे। किसी भी बड़ी से बड़ी समस्या को वह एक या दो शब्दों में ही समाप्त कर देते थे।
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