धर्म, कला और संस्कृति

अक्सर मन में प्रश्न उठता है कि यदि पुनर्जन्म है और आत्मा को दूसरा शरीर ग्रहण करना ही होता है तो फिर श्राद्ध कर्म का प्रयोजन क्या है? या यदि वह आत्मा विशेष सदा आत्मा ही रहती है तो क्या पुनर्जन्म की अवधारणा बिल्कुल ग़लत है?

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भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम, धर्म, राजनीति, समाज और नीति-नियमों की व्यवस्था करने वाला माना जाता है। उनका दर्शन मानव जीवन का आधार है। वह केवल एक राजनीतिक, आध्यात्मिक और योद्धा ही नहीं थे, उन्हें हर तरह की कलाओं में पारंगत भी माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण से धर्म का एक नया रूप और संघ शुरू होता है...

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जन्माष्टमी के लगभग एक पखवाड़े के बाद मथुरा में एक बार फिर उत्सव का माहौल है। भाद्र महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टम तिथि को राधा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि द्वापर युग में इसी पावन तिथि पर देवी राधा का प्राकट्य हुआ था।

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भगवान कृष्ण की जीवनी हमेशा रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी रही है। उनकी कहानी हमें बताती है कि मानवीय जीवन कितने उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है। हर क्षण और हर दौर में साम, दाम, दंड और भेद के अनुपालन से कैसे धर्म की रक्षा की जाए, इस सवाल का जवाब हमें कृष्ण की गाथा में मिलता है...

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नृत्य-संगीत मानव जीवन के उल्लास को अभिव्यक्त करने का माध्यम है। लोक नृत्य हमारे समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये लोक नृत्य न केवल भारत के लोगों को बल्कि समूचे विश्व को आकर्षित करते हैं। इन्हीं लोक नृत्यों में से एक राजस्थान की सपेरा जाति द्वारा किया जाने वाला कालबेलिया भी बेहद प्रसिद्ध है...

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शास्त्रीय और लोक संगीत के धनी लाखा खान किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। रेगिस्तान के रेत से निकली मखमली मिट्टी के समान लोक संगीत की सुरीली स्वर लहरियां बिखेरकर लाखा अब पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना चुके हैं...

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