धर्म, कला और संस्कृति

द्वापर युग में जन्मे श्रीकृष्ण हमारे जीवन का आधार हैं। इस धरती पर उनसे बड़ा ईश्वरतुल्य कोई दूसरा नहीं है, इसीलिए उन्हें ‘पूर्णावतार’ भी कहा गया है। कृष्ण ही गुरु हैं, कृष्ण ही सखा भी हैं। कृष्ण ही भगवान हैं। कृष्ण ही राजनीति, कृष्ण ही धर्म, कृष्ण ही दर्शन और कृष्ण ही योग का पूर्ण आधार हैं। कृष्ण को जानना और उनकी भक्ति करना ही हिंदुत्व का भक्ति मार्ग है...

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राजस्थान के माउंट आबू स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में बिल्कुल अनूठा पूजास्थल है। यहां भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे के स्वरूप की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत को स्वयं महादेव ने अपने दाहिने अंगूठे से थाम रखा है। स्कंन्द पुराण के अर्बुद खंड में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है...

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महाभारत के समय में रंगमंच का प्रभाव अपने शिखर पर था। नाट्य कला और अभिनय के महाभारत में अनेक वर्णन मिलते हैं...

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राधे-श्याम..., ये दो शब्द अटूट प्रेम का हिस्सा माने जाते हैं। ये दो व्यक्तित्व भले ही एक दूसरे के कभी हो न सके लेकिन फिर भी इनका नाम हमेशा एक दूसरे के साथ ही लिया गया। कृष्ण और राधा के जन्म और उनकी दोस्ती की कहानियां तो बहुत प्रचलित हैं, लेकिन राधा की मृत्यु कैसे हुई और कैसे उनकी प्रेम कथा अपनी परिणिति तक पहुंची, इस बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है...

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रंगों और रेखाओं के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के रूप का चित्रण इस देश की परम साधना रही है। इन चित्रों को यदि हम रेखाबद्ध काव्य या खंड काव्य कहें तो अत्युक्ति नहीं होगी। जैसे, काव्य शब्दबद्ध चित्र है, ठीक वैसे ही एक चित्र रेखाबद्ध काव्य होता है...

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कृष्ण को हम कन्हैया, कुंजबिहारी, राधेश्याम, बांकेबिहारी, नंदलाल और कई अन्य नामों से जानते हैं। इन्हीं में से उनका एक नाम ‘दामोदर’ भी है। ‘दामोदर’ शब्द में दाम का अर्थ होता है 'रस्सी' और उदर का अर्थ होता है 'पेट', यानी रस्सी से बंधा हुआ पेट। कृष्ण को ‘दामोदर’ के नाम से पुकारे जाने के पीछे एक रोचक कहानी है...

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